Supreme Court Storms Headlines Again – संविधान की चौखट से देश को मिल रहे सबसे बड़े जवाब
भारत का सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर सुर्खियों में है और इस बार कारण सिर्फ एक नहीं बल्कि कई हैं, जो न केवल देश की राजनीति बल्कि आम जनता के रोज़मर्रा जीवन पर भी गहरा असर डाल रहे हैं, ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने जिन मामलों पर सुनवाई की है, वे सीधे-सीधे सरकार, विपक्ष, राज्यपाल, चुनाव आयोग, मीडिया की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों से जुड़ते हैं, और यही वजह है कि इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ स्टूडियो तक ‘सुप्रीम कोर्ट’ ही सबसे चर्चित नाम बन गया है, हाल ही में कोर्ट ने एक ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा कि “राजनीति में अपराधीकरण लोकतंत्र को दीमक की तरह खा रहा है”, और साथ ही यह भी जोड़ा कि अब वक्त आ गया है कि सभी पार्टियों को अपने प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि जनता के सामने पूरी पारदर्शिता से रखनी होगी, इसी के साथ कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई में देरी अब ‘सिस्टम की कमजोरी’ नहीं मानी जाएगी, बल्कि इसे लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखा जाएगा, दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इंटरनेट फ्रीडम, सेडिशन कानून और UAPA जैसे विवादित कानूनों की वैधता पर भी गहरी टिप्पणी करते हुए सरकार को नोटिस जारी किया है कि आखिर क्यों न इन कानूनों की दोबारा समीक्षा की जाए जो नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार को सीधे प्रभावित करते हैं, कोर्ट की इस सक्रियता ने जनता में यह भरोसा फिर से मजबूत किया है कि संविधान की रक्षा की अंतिम जिम्मेदारी यदि किसी संस्था पर है, तो वह सिर्फ और सिर्फ भारत का सर्वोच्च न्यायालय है, इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कई राज्यों में राज्यपालों द्वारा बिलों पर हस्ताक्षर में देरी, विधानसभा सत्रों में हस्तक्षेप और नीतिगत फैसलों को रोकने जैसी घटनाओं पर भी कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि “राज्यपाल कोई राजनीतिक एजेंट नहीं हैं, उनका आचरण संविधान के दायरे में रहना अनिवार्य है”, इस बयान ने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों को लेकर चल रही बहस को एक नई दिशा दे दी है, वहीं महिलाओं के अधिकार, LGBTQ+ समुदाय की स्थिति और धर्मांतरण जैसे संवेदनशील विषयों पर भी सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गंभीर बहसें और निर्देश सामने आ रहे हैं, खासकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश दिया और यह भी स्पष्ट किया कि मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर महिला गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती, यही नहीं, पर्यावरण और जनहित याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट का नजरिया इन दिनों बेहद सक्रिय और प्रभावी रहा है, चार धाम परियोजना, ग्रेटर नोएडा की बिल्डर धोखाधड़ी, वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव और जल-जंगल-जमीन से जुड़े अन्य मुद्दों पर कोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है, जिससे जनता को यह संकेत मिल रहा है कि भले ही राजनीतिक व्यवस्था विफल हो, लेकिन संविधान का प्रहरी अभी जाग रहा है, इस बीच सोशल मीडिया पर भी सुप्रीम कोर्ट से जुड़े फैसले और टिप्पणियां ज़बरदस्त ट्रेंड कर रही हैं — #SupremeCourtVerdict, #SCOnDemocracy, #SCSlamsPoliticalSystem जैसे हैशटैग्स X और यूट्यूब पर लाखों बार देखे जा चुके हैं, जहां लोग कोर्ट की न्यायिक सक्रियता को “लोकतंत्र का रियल हीरो” बता रहे हैं, हालांकि कुछ धड़े सुप्रीम कोर्ट की आलोचना भी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जजेस को पॉलिटिकल मामलों में ज़्यादा दखल नहीं देना चाहिए, मगर बड़ी संख्या में आम नागरिकों का यह मानना है कि जब संसद और सत्ता की संस्थाएं अपने दायित्वों में असफल होती हैं, तब सुप्रीम कोर्ट ही एकमात्र उम्मीद बनकर उभरता है, कुल मिलाकर, भारत का सुप्रीम कोर्ट इन दिनों केवल एक न्यायिक संस्था नहीं बल्कि एक नैतिक शक्ति बनकर सामने आया है जो न केवल कानून की व्याख्या कर रहा है बल्कि लोकतंत्र की आत्मा की रक्षा भी कर रहा है, और यही वजह है कि आज जब देश के हर कोने में ‘न्याय’, ‘संविधान’ और ‘लोकतांत्रिक मूल्यों’ की बात होती है, तो सबसे पहले जो नाम ज़ेहन में आता है — वो है Supreme Court of India।