जैसलमेर की रेतीली रातों में रोमांस और रंगों का संगम… डांस और कल्चर का ऐसा जादू जिसे देखने दूर-दूर से उमड़ रही भीड़
अज़हर मलिक
थार के सुनहरे रेगिस्तान में इन दिनों कुछ ऐसा जादू घुला हुआ है, जिसे देखने के बाद हर पर्यटक के दिल में जैसलमेर की यादें हमेशा के लिए बस जाती हैं… दिन की तपिश, शाम की ठंडी हवाएँ और रात के समय रेत के बीच फैला रंगीन माहौल—सब मिलकर एक रोमांटिक सपना सा अहसास कराते हैं।
सम सैंड ड्यून्स और खुड़ी के डेजर्ट कैंप आजकल पर्यटकों का सबसे पसंदीदा ठिकाना बने हुए हैं। जैसे ही सूरज डूबता है, रेत पर बिछ जाती है हल्की सुनहरी परछाइयाँ… और उसी के साथ शुरू हो जाता है राजस्थानी लोकनृत्य का मोहक सफर। घूमर की धीमी लहराती चाल, कालबेलिया की नागिन जैसी अदाएँ और गेर का ऊर्जावान ताल—हर कदम में राजस्थान की अनोखी खुशबू महसूस होती है।
कैंपफायर की गर्माहट के बीच जब मांगणियार और लंगा कलाकार सुर छेड़ते हैं, तो हवा भी सुरमयी हो जाती है। पर्यटक हाथों में कॉफी लिए बैठते हैं… और सामने जगमग रेत पर नाचती कलाकाराएं—एक ऐसा दृश्य जो किसी फिल्म के सीन से कम नहीं लगता। जोड़े एक-दूसरे का हाथ थामकर इस रोमांटिक रात को महसूस करते हैं, जबकि परिवार और टूरिस्ट इस विरासत का हिस्सा बनकर झूम उठते हैं।
रात गहराती है… और माहौल बदल जाता है। पारंपरिक धुनों की जगह अब ले लेती हैं डीजे नाइट की धमाकेदार बीट्स। तारों से भरे आसमान के नीचे जब डांस फ्लोर बनता है, तो विदेशी और भारतीय पर्यटक मिलकर ऐसी मस्ती करते हैं जैसे रेगिस्तान भी उनके साथ नाच रहा हो।
जैसलमेर के डांस प्रोग्राम इन दिनों सोशल मीडिया पर भी छाए हुए हैं। रील्स और वीडियो लगातार वायरल हो रहे हैं, जिसमें टूरिस्ट इस खूबसूरत रातों की कहानी दुनिया से बाँट रहे हैं। रंगीन घाघरे, चाँदनी रात, कैम्प फायर और फायर-डांस—हर फ्रेम देखने वालों के दिल में जगह बना लेता है।
होटल और कैंप ऑपरेटरों के अनुसार, नवंबर से फरवरी तक का यह सीजन सबसे खास होता है। इसी समय यहाँ के डांस प्रोग्राम एक अलग ही चमक पकड़ते हैं, और भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि कई कैंप्स हफ्तों पहले तक फुल हो जाते हैं।
जो भी जैसलमेर आता है, वह सिर्फ रेगिस्तान नहीं देखता… वह यहाँ की आत्मा देखता है—नृत्य, संगीत, संस्कृति और रोमांस का ऐसा संगम, जो दिल को छू जाता है।
अगर आप रेगिस्तान की इस खूबसूरत रात का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो जैसलमेर इस समय आपका इंतज़ार कर रहा है—जहाँ रेत भी नाचती है… और हवा भी गीत गुनगुनाती है।