फेडरल रिजर्व गवर्नर लिसा कुक को बर्खास्त करने का ट्रम्प का प्रयास — अमेरिकी मुद्रा नीति में संभावित हस्तक्षेप पर गहराई से चर्च
अमेरिका की आर्थिक और राजनीतिक दुनिया में नई हलचल तब मच गई जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने फेडरल रिजर्व गवर्नर लिसा कुक (Lisa Cook) को बर्खास्त करने का संकेत दिया, जिससे वैश्विक स्तर पर मुद्रा नीति में संभावित हस्तक्षेप को लेकर गंभीर चिंताएँ बढ़ गई हैं। लिसा कुक को 2022 में राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा फेडरल रिजर्व बोर्ड में नियुक्त किया गया था और वे इस प्रतिष्ठित संस्था में शामिल होने वाली पहली अश्वेत महिला गवर्नर हैं, जिनका कार्यकाल 2027 तक तय है। उनका आर्थिक अनुभव, अकादमिक पृष्ठभूमि और वैश्विक वित्तीय नीति पर रिसर्च उन्हें अमेरिकी वित्तीय तंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है। लेकिन ट्रम्प का यह प्रयास न केवल फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता को चुनौती माना जा रहा है बल्कि यह आशंका भी बढ़ा रहा है कि अगर राजनीतिक दबाव से केंद्रीय बैंक के निर्णय प्रभावित हुए तो अमेरिकी डॉलर, मुद्रास्फीति और वैश्विक वित्तीय स्थिरता पर गहरा असर पड़ेगा।
फेडरल रिजर्व अमेरिका की मौद्रिक नीति का केंद्रीय स्तंभ है, जो ब्याज दरों, महंगाई नियंत्रण और आर्थिक विकास के संतुलन के लिए स्वतंत्र रूप से काम करता है। लंबे समय से यह परंपरा रही है कि राष्ट्रपति या प्रशासन सीधे तौर पर फेडरल रिजर्व के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करते ताकि वैश्विक निवेशकों और बाजारों का भरोसा बना रहे। लेकिन ट्रम्प का लिसा कुक को हटाने का बयान इस परंपरा को तोड़ता हुआ दिख रहा है। ट्रम्प ने आरोप लगाया कि फेडरल रिजर्व की मौजूदा नीतियाँ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रही हैं और उच्च ब्याज दरें विकास को रोक रही हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि वे दोबारा सत्ता में आते हैं तो फेडरल रिजर्व को “जवाबदेह” बनाना उनकी प्राथमिकता होगी। इस संदर्भ में लिसा कुक जैसी स्वतंत्र विचारधारा वाली गवर्नर को निशाना बनाना विशेषज्ञों के अनुसार संस्थागत स्वतंत्रता को कमजोर करने की कोशिश है।
वित्तीय विशेषज्ञ मानते हैं कि लिसा कुक की बर्खास्तगी की प्रक्रिया आसान नहीं होगी क्योंकि फेडरल रिजर्व गवर्नरों की नियुक्ति सीनेट की मंजूरी से होती है और उनका कार्यकाल तय होता है। उन्हें बिना ठोस संवैधानिक कारण या गंभीर आरोपों के हटाना लगभग असंभव है। यही कारण है कि ट्रम्प का यह बयान राजनीतिक दबाव बनाने और फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता को चुनौती देने के रूप में देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थाओं ने भी हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि किसी भी देश का केंद्रीय बैंक राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए ताकि बाजार स्थिरता बनी रहे।
इस पूरे विवाद का असर पहले ही अमेरिकी और वैश्विक बाजारों पर देखा जाने लगा है। अमेरिकी डॉलर में उतार-चढ़ाव देखने को मिला, वहीं बांड यील्ड्स और स्टॉक मार्केट में भी अस्थिरता बढ़ी। निवेशकों को चिंता है कि यदि राजनीतिक दबाव के चलते फेडरल रिजर्व की नीतियाँ बदली जाती हैं तो महंगाई पर नियंत्रण मुश्किल हो सकता है और अर्थव्यवस्था असंतुलन की ओर जा सकती है। खासकर ऐसे समय में जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था महंगाई और मंदी की आशंका के बीच झूल रही है, यह विवाद और भी अहम हो गया है।
लिसा कुक ने खुद अब तक इस मामले पर सीधा बयान नहीं दिया है लेकिन उनके करीबी सूत्रों के अनुसार वे अपने पद पर मजबूती से बनी रहेंगी और किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव के आगे झुकने वाली
नहीं हैं