चुनाव 2025 में वोटर आईडी-आधार लिंकिंग और नागरिकता विवाद – मतदान अधिकार पर नई बहस
भारत में 2025 के चुनाव के दौरान वोटर आईडी और आधार लिंकिंग का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है, क्योंकि यह सीधे तौर पर मतदान अधिकार (Voting Rights) और नागरिकता विवाद से जुड़ता है। चुनाव आयोग (Election Commission) ने पिछले कुछ वर्षों में मतदाता सूची को साफ और अपडेट करने के लिए वोटर आईडी को आधार नंबर से लिंक करने की प्रक्रिया तेज की है। इसका मुख्य उद्देश्य फर्जी वोटिंग, डुप्लीकेट वोटर आईडी और मृत व्यक्तियों के नाम हटाना बताया गया है। लेकिन इसके साथ ही यह विवाद भी बढ़ा है कि क्या आधार लिंकिंग से कुछ असली मतदाता, खासकर हाशिए पर रहने वाले गरीब, प्रवासी मजदूर और जनजातीय समुदाय, वोटिंग अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
सरकार का तर्क है कि आधार-वोटर आईडी लिंकिंग से चुनावी पारदर्शिता (Electoral Transparency) बढ़ेगी और बूथ स्तर पर गड़बड़ी रोकी जा सकेगी। वहीं, विपक्ष और कई नागरिक अधिकार संगठन इस पर सवाल उठा रहे हैं कि आधार डेटा में त्रुटियों, बायोमेट्रिक मिसमैच या दस्तावेज़ों की कमी के कारण लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। इस बहस में नागरिकता विवाद (Citizenship Controversy) भी जुड़ गया है, खासकर उन इलाकों में जहां नागरिकता कानून (CAA/NRC) को लेकर पहले से तनाव है। आलोचकों का कहना है कि आधार लिंकिंग के नाम पर राजनीतिक रूप से असहज समूहों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि वोटर आईडी-आधार लिंकिंग स्वैच्छिक (Voluntary) है और किसी के पास आधार न होने पर भी वह मतदान कर सकता है, बशर्ते उसके पास मान्य पहचान पत्र हो। इसके बावजूद, जमीनी स्तर पर कई जगह मतदाताओं को यह डर है कि आधार न जुड़ने से उनका नाम सूची से हट सकता है। सोशल मीडिया और WhatsApp ग्रुप्स में भी इस मुद्दे पर अफवाहें फैल रही हैं, जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति है।
इस बार के चुनाव में खास ध्यान डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम पर है। चुनाव आयोग ने बायोमेट्रिक स्कैनिंग, QR कोड बेस्ड वोटर स्लिप और मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए मतदाता पहचान को मजबूत करने के कदम उठाए हैं। ग्रामीण इलाकों में ‘मतदाता जागरूकता अभियान’ (Voter Awareness Campaign) चलाकर लोगों को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि आधार लिंकिंग का मतलब वोटिंग अधिकार खत्म होना नहीं है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वोटर आईडी-आधार लिंकिंग को सही तरीके से लागू किया जाए तो यह डुप्लीकेट वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग को काफी हद तक रोक सकता है, लेकिन इसके साथ पारदर्शिता और डेटा सुरक्षा (Data Privacy) भी सुनिश्चित करनी होगी। साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि आधार डेटा से जुड़ा कोई भी लीकेज या हैकिंग, चुनावी प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
2025 के चुनाव नतीजे आने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि आधार लिंकिंग ने वास्तव में वोटिंग प्रक्रिया को कितना पारदर्शी और सुरक्षित बनाया, और क्या नागरिकता विवाद के बीच मतदाता बिना डर के अपना संवैधानिक अधिकार इस्तेमाल कर पाए। यह मुद्दा आने वाले वर्षों में भी भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी बहसों में से एक बना रह सकता है।