Bollywood movies : बॉलीवुड का ये दो और शायद सबसे खराब माना जाएगा। इसकी एक नहीं कई वजह हैं।
खराब की लाइन में इतनी फ़िल्में हैं की एक केस स्टडी हो सकती है कि आखिर इतनी बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री को हो क्या गया या उन लोगों को क्या हो गया जिन्होंने इस इंडस्ट्री को पहुंचाया था? हालात लगातार बदतर हो रही है।
एक के बाद एक कोई बड़ा चेहरा ऐसा नहीं बचा है जिसे दर्शकों ने नकार न दिया हो। एक तरफ जहाँ ज्यादातर फिल्मों के बॉयकॉट का शोर है, वहीं बीते कुछ महीनों में बॉलीवुड फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने का दर्द रहा है। बड़ा बजट, बड़े सितारे, बड़ा प्रमोशन लेकिन छोटा बिज़नेस फ्लॉप मामला।
रणबीर कपूर की शमशेरा हो एक विलन रिटर्न्स। हॉलीवुड फ़िल्म की रीमेक रनवे 34 अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज या फिर हॉलीवुड जैसी दिखने वाली कंगना की फ़िल्म धाकड़ एक के बाद एक की तमाम फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गई। लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है? क्या हिंदी फ़िल्म स्टार्स से पब्लिक चुकी है?
क्या बॉलीवुड फिल्मों में अब नहीं रही पहले जैसी बात या दम? हालांकि साउथ की कई फ़िल्में भी बुरी तरह फ्लॉप, लेकिन फिर भी जिसतरह साउथ की फिल्मों ने बॉलीवुड के मुकाबले बॉक्स ऑफिस पर बिज़नेस किया जनता ये सोचने लगी है।
हिंदी फिल्मों का जादू आप खो चुका है, बॉलीवुड की फ़िल्में नहीं चल रही है। इसकी बड़ी वजह ये भी है कि लोग उनसे जुड़ नहीं पा रहे है यानी कनेक्ट नहीं हो पा रहे हैं।
वे एक नयापन रहे हैं और सिनेमा भी, क्योंकि यही वक्त शायद हिंदी सिनेमा के पुनर्जागरण का हो सकता है। अगर फ़िल्मकार ये समझे तो कहानी को लेकर आप एक्सपेरिमेंट उतना ही कर सकते हैं जितना दर्शक को आसानी से बच जाएं क्योंकि फिल्मों में एक्स्ट्रैक्ट ऐसा कुछ नहीं होता और चलता भी नहीं।
बॉलीवुड में हर तरह की कॉपी करके देख ली गयी है।
जब ओरिजिनल सेल्फ को ढूंढने का वक्त है। ये भी समझने का की ओवरडोज और ओवर एक्टिंग कितनी डिस्ट्रक्टिव हो सकती है।
वो चाहे एक तरह की कन्टेन्ट की हो या बोझ जैसे छपने वाले चेहरों की, जिन्हें कोई करण जौहर सिर्फ इसलिए छापना चाहता है कि उसकी भूमिका बनी रही लेकिन ये सोच पर दर्शकों ने इतने तमाचे मारे हैं की पितामह को चक्कर आ गए हैं। करण जौहर की लगातार आधा दर्जन फ़िल्में नकार दी गई। संदेशों साफ है जो तुम चाहते हो वो नहीं।
जो हम चाहते हैं वो देखना है नहीं तो वो दुकान बंद करो। अक्षय कुमार ने भी ऐक्शन से लेकर हर बात कर ली। फिर अचानक देशभक्ति की चाशनी में ना अभी लिए समाज सुधारक की सनस्क्रीन भी लगा लिए
, लेकिन ना दर्शक चुपके ना आलोचनाओं की तीखी धूप से झुलसने से बच सकें। आप कहते हैं हाँ मुझसे गलती हुई थी। अमिताभ बच्चन से लेकर सलमान खान, शाहरुख से लेकर कोई भी ओवर हाइब्रिड नया चेहरा कोई भी बॉलीवुड में एक जादू नहीं जगा पाया। दरअसल कन्टेन्ट के अलावा सब पर काम हो रहा है।
कहानी को सबसे हाशिए पर रखा जा रहा है। राइटर सबसे सस्ता है, बाकी चमक धमक फूल। साथ ही लंबे समय से बॉलीवुड अभी हिसाब से कुछ नैरेटिव सेट करता आ रहा है
, लेकिन अब उसे भी नाकारा जा रहा है। अब से नहीं। ऐक्टर्स के 20 साल की ऐक्टर्स बिना किसी सॉलिड कहानी के नहीं जाये, जहाँ अंधेरे वाली कहानियाँ, ये सेक्स का तड़का लगने वाला ऐक्शन ये सब लगा दिया गया है। साउथ में भी कॉम्पिटिशन है तो आर आर या केजीएफ जैसी फिल्मों से वरना फ्लॉप्स वहाँ भी कम नहीं। फिल्मों का इन्फेक्शन ओटीटी कंटेंट में भी देखने को मिल रहा है, लेकिन यहाँ क्योंकि ऑप्शन बहुत ज्यादा है और वक्त की कोई पाबंदी नहीं इसलिए काम चल जाता है। समझना ही होगा की इतनी बड़ी इंडस्ट्री में अच्छी कहानियाँ क्यों नहीं लिखी जा रही या फिर उनका ट्रीटमेंट उस तरह क्यों नहीं हो रहा? अब कुछ भी चलेगा तो बिलकुल नहीं चल रहा है और अगर ये लंबे वक्त तक चल गया। बहुत कुछ बंद हो सकता है।