Biography_Mukhtar Ansari_ जो सिस्टम से ही खेलता रहा खेलते-खेलते_ खत्म हो गया
साल 2022 लखनऊ जेल से कुछ कैदी फरार हो गए। राज्य सरकार ने अलग अलग जिलों में तैनात तीन अफसरों को लखनऊ जेल में तैनाती। उनमें से एक मैं भी था। मैं सीतापुर जेल से आया। 69 साल के एसके अवस्थी अपने पुराने किस्से याद कर रहे हैं। इंडिया टुडे से जुड़े आशीष मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक 9 साल पहले ही पद से रिटायर्ड महकमे में 37 साल की नौकरी के दौरान उनकी छवि दुर्दांत अपराधियों से पंगा लेने की रही। इसके बाद जिक्र हुआ मुक्ता। अप्रैल 2003 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा सत्र शुरू मऊ सदर से निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी जेल में बंद।सत्र में शामिल होने के लिए वे लखनऊ जेल शिफ्ट हुआ था। 23 अप्रैल 2003 के बाद। सत्र में शामिल होने के लिए वे लखनऊ जेल शिफ्ट हुआ था। 23 अप्रैल 2003 के बाद। कुछ लोग सुबह 10:30 बजे मुख्तार से मिलने लखनऊ जिला पहुंचे। मैं जेल में अपने दफ्तर में बैठा था। मुख्तार वही आ गया और मुलाकातियों को बिना तलाशी भीतर करने को कहा।
एस के अवस्थी बाहर निकले तो देखा कि मुख्तार के मुलाकाती जेल के मुख्य गेट के भीतर उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को सभी की सघन तलाशी लेने का आदेश दिया।अवस्थी कहते हैं, मुख्तार बौखला गया था। अपने एक मुलाकाती से रिवॉल्वर लेकर मेरे ऊपर तान दी और गरियाते हुए। बोला तुम जेल से बाहर आओ, ज़रा तुम्हारा काम तमाम करता हूँ। मौके पर मौजूद जेलकर्मियों ने बीच बचाव कर मुख्तार को उसकी बैरक में वापस भेजा। अवस्थी ने दफ्तर पहुँचकर ऊपर के अफसरों को घटना के बारे में जानकारी दी। इसके अवस्थी आगे कहते हैं, मैं मुख्तार के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कराने पर जबकि कई अधिकारी ऐसा ना करने का दबाव बना रहे थे।हालांकि अगले दिन एसके अवस्थी लखनऊ के आलमबाग थाने में मुख्तार के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कराने में कामयाब रहे। दो महीने बाद जून 2003 मैजिस्ट्रेट ने आईपीसी की धारा 353504506 के तहत अपराध के लिए मुख्तार पर आरोप तय किए। इसके बाद यह पूरा मामला अपराध, दंड व्यवस्था की सुस्ती गवाह बन गया।समय बीता और 2007 में एसके अवस्थी मुख्तार के गृह जिले गाजीपुर की जेल में तैनात हुए। उसी जेल में बंद मुख्तार को उनके पहुंचने से पहले ही आग्रा की जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। अवस्थी ने देखा कि जेल में मुख्तार के लिए बैडमिंटन कोर्ट बनवाया गया था, जहाँ जिले के अधिकारी उसके साथ खेलने आते थे। अवस्थी ने जेल में मुख्तार की मौज मस्ती की। एक डिटेल्ड यानी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को भेजो। गाजीपुर से इटावा ट्रांसफर होने के बाद वहीं से एसके अवस्थी 30 जून 2013 को रिटायर हो गए।मुख्तार ने न्याय प्रणाली की खामियों का पूरा फायदा उठाते हुए 30 जनवरी 2014 को लखनऊ जिला न्यायाधीश एडीजे कोर्ट में अर्जी देकर जेलर अवस्थी से दोबारा जिरह कराने की मांग उन्हें बुलाया गया। 25 फरवरी 2014 को क्रॉस एग्जामिनेशन हुआ। रिटायरमेंट के करीब आठ महीने गुज़रने के बाद अब बस्ती 10 साल पहले के मूल बयान पर कायम नहीं रहे।23 दिसंबर 2020 को एडीजी कोर्ट ने मुख्तार को बरी कर दिया। इससे उत्तर प्रदेश सरकार की खूब किरकिरी हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गृह विभाग को एडीजे कोर्ट निर्णय के खिलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करने और उन कारणों की पड़ताल करने के निर्देश दिए हैं जिनकी वजह से मुख्तार के खिलाफ़ सरकार का पक्ष कमजोर पड़ा।
27 अप्रैल 2022 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडीजे कोर्ट के निर्णय के खिलाफ़ अपील दायर की गई। इस दौरान अभियोजन विभाग ने अंदरूनी जांच शुरू की तो पता चला कि मुख्तार मामले की निगरानी करने वाले अपर जिला शासकीय अधिवक्ता यानी एडीजीसी मुनेश यादव ने ना केवल सरकार को सही जानकारियां नहीं दी, बल्कि ऐक्टिव रिपोर्ट में उन्होंने ये भी लिख दिया कि मुख्तार के खिलाफ़ जेलर को धमकी देने वाला मामला हाइकोर्ट में अपील योग्य है ही नहीं। न्याय विभाग ने मुनेश को हटा दिया। अब नए और काबिल वकीलों की एक टीम हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से मुख्तार के खिलाफ़ कोर्ट में होते हैं। छे? महीने बाद 21 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ज्वेलर को धमकाने के मामले में मुख्तार को दोषी करार देते हुए उसे 7 साल की जेल की सजा सुनाई और उस पर ₹37,000 का जुर्माना भी लगाया। उसे किसी आपराधिक मामले में मिलने वाली यह पहली सजा।
हाईकोर्ट ने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के उन टिप्पणियों का जिक्र किया जिनमें वह स्पष्ट कर चुका है कि गवाहों के मुकरने का आशय यह नहीं कि उनके बयान को ही खारिज कर दिया जाए, बल्कि होस्टाइल होने से पूर्व उसने अभियोजन कथानक का समर्थन किया है तो उसका महत्त्व है। साल 2022 विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ फिर से मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ। फिर आप अफसरों ने मुख्तार पर नकेल कसनी शुरू कर दी। पहला नाम अवनीश अवस्थी का, जो फ़िलहाल
मुख्यमंत्री योगी के सलाहकार हैं और पूर्व में अपर मुख्य सचिव गृह रहे। उन्होंने सीएम योगी के निर्देश पर मुख्तार के खिलाफ़ अभियान की रूपरेखा बनाकर उसकी शुरुआत कर दी। अगला नाम संजय प्रसाद का, जिनके पास मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रमुख सचिव के साथ गृह विभाग की भी जिम्मेदारी है। वह यूपी के 50 चिन्हित अपराधियों पर कार्रवाई की लगातार निगरानी के साथ गृह और कानून विभाग के साथ समन्वय बनाकर रखते हैं। आनंद कुमार, जिन्हें डीजी जेल के रूप में यूपी की जेलों में बदलाव का जनक भी माना जाता है।
जिन्होंने जेल में बंद मुख्तार और दूसरे दुर्दांत अपराधियों की वीडियो वॉल के जरिये प्रभावी निगरानी का तंत्र विकसित किया। अब बारी आती है प्रशांत कुमार की। यूपी के एडीजी कानून और व्यवस्था मुख्तार समेत 12 दुर्दांत अपराधियों और अन्य माफियाओं के खिलाफ़। पुलिस के सख्त अभियान निरंतर निगरानी का तंत्र विकसित किया। आशुतोष कुमार पांडेय, एडीजी अभियोजन के रूप में अपराधियों के खिलाफ़ प्रभावी पैरवी करके कोर्ट से सजा दिलाने के मामले में यूपी को देश भर में पहचान दिलाई।
इसके साथ ही पहली बार अभियोजन विभाग पेपरलेस हुआ। अमिताभ यश एडीजी एसटीएफ के रूप में मुख्तार के गुर्गों की धरपकड़ का अभियान चलाया। अत्याधुनिक सर्विलांस तकनीक से लैस करके एसटीएफ को देश के सबसे ज्यादा सक्षम फोर्स बनाया। मऊ जिले के सरायलखंसी थाने में मुख्तार और चार अन्य के खिलाफ़ दर्ज एफआईआर में विधायक निधि के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था। इस मामले में अभियोजन विभाग की पैरवी के बाद मुख्तार को 14 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा। न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की
मुख्तार की जमानत अर्जी खारिज करते हुए उसे कानून व्यवस्था के लिए चुनौती करार दिया। कोर्ट ने कहा याची की पहचान बताने की जरूरत नहीं। उसे भारत के हिंदीभाषी राज्यों में कथित तौर पर रॉबिनहुड की छवि के तौर पर जाना जाता है। वो हार्ड कोर और आदतन अपराधी है, जो 1986 से अपराध में है। यह वास्तव में हैरान करने वाला है कि 1986 से अपराध की दुनिया से जुड़ा एक व्यक्ति जिसपर अलग अलग प्रकार के 50 से ज्यादा आपराधिक मामले हैं, लेकिन उसने अपने बचाव के लिए ऐसा प्रबंध कर रखा है या इंतजाम कर रखा? की उसके खिलाफ़ एक भी दोष सिद्ध नहीं हुआ। ये पहली बार था। कोर्ट ने मुख्तार के बारे में इतनी तल्ख टिप्पणी की थी।जेलर को धमकाने के मामले में मुख्तार को सजा सुनाने के दौरान हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी का भी संज्ञान लिया था। इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ ने गैंगस्टर ऐक्ट में मुख्तार को 5 साल कैद ए बामुशक्कत और 50,000 जुर्माने की सजा सुनाई। मुख्तार और उसके गैंग के खिलाफ़ 1999 में लखनऊ के हजरतगंज थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था। 23 दिसंबर 2020 को ट्रायल कोर्ट ने जेलर को धमकाने वाले मामले के साथ इस केस में भी मुख्तार को बरी कर दिया था। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन 1990 में गाजीपुर के जिलाधिकारी मुख्तार पर उनके फर्जी साइन से शस्त्र लाइसेंस लेने का आरोप है। रंजन का गाजीपुर की भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट में 7 जुलाई को बयान कराया गया। इसी तरह पूर्व मुख्य सचिव और अभी उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के चेयरमैन आरके तिवारी 1999 में आग्रा के जिलाधिकारी थे। तब उन्होंने जेल में मुख्तार की बैरक से मोबाइल बरामद किया था। इस मामले में भी सितंबर में तिवारी की गवाही कराई गई। जेलर को धमकी देने के मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में सरकार की ओर से पेश वकीलों का तर्क था कि मुख्तार प्रदेश में सबसे बड़ा बाहुबली है।
उसके नाम से आम आदमी के अलावा सरकारी लोग भी भय खाते है या कहें डरते हैं। जेलर एसके अवस्थी से पहले रहे ज्वैलर आरके तिवारी की हत्या भी कथित रूप से इसी वजह से हुई थी। क्योंकि वहाँ जेल में मुख्तार को रोक टोक नहीं पसंद थी और जेल में अभी भी मुख्तार का खौफ कम थोड़ी ना हुआ है। पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुख्तार को पंजाब की रोपड़ जेल से लाकर बांदा मंडल कारागार में बंद किया गया था। उसके आने के बाद से बाला जेल हाई सिक्योरिटी जेलों में शुमार हो गयी।
16 मई 2021 को नाव के जेल अधीक्षक एके सिंह का बांदा ट्रांसफर हुआ। वे 17 अक्टूबर को मेडिकल लीव पर चले गए। फिर लौटकर नहीं आए। उसके बाद 12 नवंबर 2021 को बरेली से विजय विक्रम सिंह का तबादला बांदा जेल की आ गया। उन्होंने जौन ही नहीं किया और 29 नवंबर को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। उसके बाद से बांदा जेल की व्यवस्था प्रभारी जेल अधीक्षक के हवाले है। अब नजर डालते हैं मुख्तार के अपराधों के फूलप्रूफ तरीकों पर रॉबिनहुड की छवि तैयार की और गरीबों की हर संभव मदद करके मुख्तार ने बेरोजगार युवाओं को अपने साथ जोड़ लिया, जो उसके साथ मर मिटने को तैयार हो। मुख्तार सीधे तौर पर अपराध करने से बचता रहा। शूटर की फौज तैयार की, उन्हें ठेकों में हिस्सेदार बनाया, उनकी मदद से डरा धमकाकर या हत्याएं करा कर दहशत पैदा की। मुख्तार ने पूर्वांचल के जिलों में अपने गुर्गों और शूटरों की मदद से सरकारी अधिकारियों और प्रतिद्वंदी ठेकेदारों को धमकाया और हत्याएं कराकर सरकारी ठेकों पर कब्जा जमा लिया। उसने ग्राम समाज और नजूल की जमीन पर अवैध कब्जा किया।
सरकारी नजूल की जमीन को हथियाकर अपने समर्थक बिल्डरों की मदद से हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण कराया। मुख्तार जीस जेल में बंद होता है। उसके गुर्गे भी छोटे मुकदमे में जमानत कटाकर उसी जेल में बंद हो जाते हैं। उन गुर्गों के बल पर जेल के भीतर रहकर नेटवर्क संचालित होता है। दबंगई के बल पर जेल में बंद छोटे अपराधियों का समर्थन जुटाकर पूरी बैरक हाइजैक कर लेता है। छोटे अपराधियों के तंत्र का इस्तेमाल अपहरण और हत्या के लिए करता है। जेल में हथियार, मोबाइल जुटाने, गोपनीय सूचनाएं पहुंचाने के लिए हम मुख्तार और उसके गुर के
भ्रष्ट जेल कर्मचारियों को मुंहमांगे रिश्वत देते हैं। मुख्तार मोबाइल या हथियार को जेल में अपने विश्वसनीय कैदी के पास रखता है ताकि पकड़े जाने पर बच सके। कई बार हथियारों को जमीन में गाड़ कर छिपा दिया जाता है। बताया जाता है कि सभी महत्वपूर्ण कार्यालयों में मुख्तार के मुखबिर मौजूद हैं, जो अफसरों के मूवमेंट की जानकारी पहुंचाते हैं। सर्विलांस से बचने के लिए मुख्तार अपने गुर्गों से कोडवर्ड में बात करता है। जब उसे किसी प्रकार का अंदेशा होता है तो जेल में बंद मुख्तार डॉक्टर या अन्य कार्य टीमों से गलत मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर कोर्ट में पेशी से बच निकलता है।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्तार के तरफ से 12 से 15 वकीलों की एक टीम पैरवी के लिए मौजूद रहती है। इससे दूसरे पक्ष पर काफी दबाव बनता है। वह गवाहों को तोड़ देता है। कानूनी प्रक्रिया की खामियों का फायदा उठाकर मुख्तार कोर्ट में चल रहे मुकदमे को लंबित करवाता है और इस दौरान गवाहों को डरा धमकाकर या दूसरे तरीकों से तोड़ने की कोशिश की जाती। बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी और उसका परिवार जांच एजेंसियों के निशाने पर भी है। पिछले अगस्त में प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने मुख्तार और उसके संबंधियों के
12 ठिकानों पर छापे मारे। पंजाब की रोपड़ जेल में मुख्तार की कथित खातिरदारी पर सियासी तापमान बढ़ गया। भगवंत मान सरकार की जांच में यह बात सामने आई है कि पूर्व में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह सरकार ने पंजाब की जेल में बंद मुख्तार को वीआइपी ट्रीटमेंट दिया था। महान सरकार की जांच के मुताबिक सरकार ने उसका केस लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील को हायर किया। वकील को हर सुनवाई के एवज में ₹11,00,000 फीस के तौर पर दिए। इस तरह पंजाब की कांग्रेस सरकार ने ₹55,00,000 एक अपराधी की सुनवाई के लिए
खर्च कर दिया है। मान सरकार ने मुख्तार के वकील के बिलों की मंजूरी देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद अब पेच फंसा हुआ है। यूपी की जेल में भी मुख्तार के मददगार कम नहीं है। जून में बांदा जिला प्रशासन ने मंडल जेल कारागार में छापेमारी की थी। उस दौरान कई जेल कर्मचारी मुख्तार की आवभगत में लगे मिले। बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी अनुराग पटेल और पुलिस अधीक्षक अभिनंदन की संयुक्त जांच रिपोर्ट पर डेप्युटी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह और चार बंदी रक्षक निलंबित कर दिए गए थे। मुख्तार समेत पूरे परिवार पर मुकदमे हैं, मुकदमे हैं।
फिर वो चाहे उनकी पत्नी अफसा अंसारी हो या बेटे अब्बास और उमर मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी पर भी कुल छह मुकदमे हैं, जिसमें हैरानी है तो इस बात की है। एक मुख्तार जहाँ अपराध की दुनिया में कुख्यात है, वहीं उसके परिवार का इतिहास गौरवशाली है। उसके दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926 27 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। दिल्ली में एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है। मुख्तार के पिता सुभान उल्ला अंसारी एक कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के चाचा लगते है। 30 जून 1963 को जन्म मुख्तार अपने तीन भाइयों में सबसे छोटा है। उसके सबसे बड़े भाई सिंबल तुला अंसारी और फिर अफजाल अंसारी। मुख्तार की शुरुआती पढ़ाई गाजीपुर में यूसुफपुर के गवर्नमेंट इंटर मीडिएट कॉलेज में हुई। इसके बाद उसने गाज़ीपुर गवर्नमेंट पीजी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसी कॉलेज के पूर्व छात्र और आजमगढ़ में वकालत करने वाले अजीजुल कहते हैं। की कॉलेज के समय से ही मुख्तार की पहचान एक अच्छे निशानेबाज के रूप में होती थी। वह गुलेल से बढ़िया निशाना लगाता था। उस दौर में पूर्वांचल में एक साथ कई विकास योजनाएं शुरू होने पर मुख्तार अपराध की दुनिया में सक्रिय हो गया। इन योजनाओं के ठेके लेने के लिए अलग अलग गिरोह भी सामने आए। उस समय के दो गिरोहों पूर्वी यूपी में प्रमुख थे। एक तरफ मकनुसिंह गैंग और दूसरी तरफ साहिब सिंह। मुख्तार मकनुसिंह गैंग का मुख्य गुर्गा था वाराणसी का बृजेश सिंह साहिब सिंह गिरोह का मुख्य क्या हुआ करता था? बाद में मुख्तार और बृजेश दोनों ने अपना अलग गिरोह बना लिया और रेलवे समेत बिजली विभाग के टेंडर हथियाने की दौड़ में शामिल हो गए। 80 के दशक में मऊ में तैनात रहे सब इंस्पेक्टर प्रदीप सिंह 2003 में डिप्टी एसपी के पद से रिटायर हुए थे। वह बताते हैं कि 1985 में एक प्लॉट पर कब्जे को लेकर मकनुसिंह और साहब सिंह गिरोह आमने सामने आ गए थे। वहीं से पूर्वांचल में मुख्तार और बृजेश सिंह के बीच आपराधिक वर्चस्व की जंग शुरू हुई थी। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक मुख्तार के खिलाफ़ आपराधिक मामला 1988 में गाजीपुर सदर कोतवाली में ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या का दर्ज किया गया था। प्रदीप सिंह बताते हैं कि राय की हत्या के बाद पूर्वी यूपी में मुख्तार की पहचान एक अपराधी के रूप में हो गई। मुख्तार ने हर जिले में गुर्गे तैयार करने शुरू कर दिए, जिन्हें सरकारी ठेकों में हिस्सेदारी मिलती थी। मुख्तार है जेल से अपराध करने का तंत्र विकसित किया जिसने उसके खौफ में और इजाफा पूर्व डीजीपी बृजलाल मुख्तार की कार्यशैली की परतें खोल देते हैं। वह कहते हैं। मुख्तार बेहद शातिर दिमाग, अपराधी, आम तौर पर मैं खुद कोई अपराध नहीं करता बल्कि करीबी लोगों के हाथों अंजाम दिलाता है। गवाहों को मारकर खरीदकर या डराकर वे पक्ष में माहौल बनाता है। नवंबर 2005 में पूर्व भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड और जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड के दौरान मुख्तार जेल में बंद था। 1989 बैच के पीपीएस अधिकारी रहे शैलेंद्र जनवरी 2004 में उस वक्त चर्चा में आए थे जब स्पेशल टास्क फोर्स के पद पर लखनऊ में तैनाती के दौरान आपराधिक मामला 1988 में गाजीपुर सदर कोतवाली में ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या का दर्ज किया गया था। प्रदीप सिंह बताते हैं कि राय की हत्या के बाद पूर्वी यूपी में मुख्तार की पहचान एक अपराधी के रूप में हो गई। मुख्तार ने हर जिले में गुर्गे तैयार करने शुरू कर दिए, जिन्हें सरकारी ठेकों में हिस्सेदारी मिलती थी। मुख्तार है जेल से अपराध करने का तंत्र विकसित किया जिसने उसके खौफ में और इजाफा पूर्व डीजीपी बृजलाल मुख्तार की कार्यशैली की परतें खोल देते हैं। वह कहते हैं।मुख्तार बेहद शातिर दिमाग, अपराधी, आम तौर पर मैं खुद कोई अपराध नहीं करता बल्कि करीबी लोगों के हाथों अंजाम दिलाता है। गवाहों को मारकर खरीदकर या डराकर वे पक्ष में माहौल बनाता है। नवंबर 2005 में पूर्व भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड और जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड के दौरान मुख्तार जेल में बंद था। 1989 बैच के पीपीएस अधिकारी रहे शैलेंद्र जनवरी 2004 में उस वक्त चर्चा में आए थे जब स्पेशल टास्क फोर्स के पद पर लखनऊ में तैनाती के दौरान मुखबिरों से सूचना मिली की सेना का एक भगोड़ा लाइट मशीन गन लेकर भागा है और उसे मुख्तार को बेचने की तैयारी में है। उसके बाद शैलेंद्र ने भगोड़े को पकड़कर एलएमजी बरामद की थी। शैलेंद्र का दावा था कि एलएमजी मुख्तार के पास से ही बरामद हुई थी। इसी आरोप के चलते मुख्तार के खिलाफ़ आतंकवाद निरोधक कानून यानी पोटा के तहत मामला दर्ज कराया गया था। इसके बाद शैलेंद्र मुलायम सरकार के निशाने पर आ गए थे, क्योंकि विधायक के तौर पर मुख्तार सपा का समर्थन कर रहा था।सरकार के दबाव में आकर शैलेंद्र ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। बात यहीं खत्म नहीं हुई। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद शैलेंद्र वाराणसी में समाज सेवा कर रहे थे। उसी दौरान वहाँ के बलवंत राय डिग्री कॉलेज में भ्रष्टाचार का मामला ज़ोर पकड़े हुए था। कॉलेज के छात्रों की मदद मांगने पर वे छात्रों के साथ डीएम के यहाँ गए। डीएम अपने ऑफिस में नहीं थे। करीब घंटे भर तक इंतजार करने के बाद सभी वहाँ से लौट आए थे। इसके बाद डीएम ऑफिस के चपरासी लालजी ने वाराणसी के कैंट कोतवाली में डीएम ऑफिस के विश्राम कक्ष की कुर्सियों को तोड़ ने डीएम की कुर्सी पर बैठने, नारा लगाने और सरकारी काम में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज करवाया था। शैलेंद्र कहते हैं इस मामले में उन्हें जेल भेजकर प्रताड़ित करने की पूरी तैयारी थी। कोर्ट में पेशी के दौरान वकीलों के भारी विरोध के बाद उन्हें कोर्ट से ही जमानत दे दी गई। हालांकि शैलेंद्र को कोर्ट के काफी चक्कर लगाने पड़े। मार्च 2017 में योगी सरकार बनने के बाद दिसंबर 2017 में शैलेंद्र के ऊपर दर्ज मुकदमे को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद वाराणसी के जी हम कोर्ट ने 6 मार्च 2021 को शैलेंद्र पर दर्ज मुकदमे को वापस लेने को मंजूरी दी थी। शैलेंद्र इन दिनों लखनऊ में रहकर प्राकृतिक खेती और क्लीन एनर्जी ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में नए प्रयोग कर रहे हैं। दूसरे कई गैंगस्टरों की तरह मुख्तार ने भी अपनी सुरक्षा के लिए सियासत को ढाल बनाया। पूर्वी यूपी में जमीन और तालाबों के अवैध कब्जे के खिलाफ़ लड़ रहे मऊ के सामाजिक कार्यकर्ता छोटे लाल गाँधी के शब्दों अपनी आपराधिक करतूतों को कवच देने के लिए मुख्तार ने 1995 से महू विधानसभा सीट पर राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी थी। इस सीट पर 30 फीसदी से ज्यादा मतदाता मुसलमान हैं, जिनका समर्थन मुक्त आहार उठा। 1996 में इसी सीट से मुक्त आहार में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उसके बाद वह इस सीट से लगातार पांच बार विधायक बना। 1996 में पहला चुनाव जीतते हैं। मुख्तार बसपा से अलग हो गया। 2002 और 2007 में वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधायक बना। उसने मऊ और गाजीपुर में रॉबिनहुड की तरह अपनी छवि बनाई है, जो बड़े सरकारी ठेकों में वर्चस्व स्थापित कर गरीबों की मदद करता था।गणित से मुख्तार के समर्थकों की संख्या बढ़ती चली गई। 2002 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार के भाई अफ़ज़ाल अंसारी पूर्वी यूपी के तत्कालीन प्रमुख भाजपा नेता कृष्णानंद राय से मोहम्मदाबाद सीट से हार गए। इसमें माफिया बृजेश सिंह का भी साथ मिला था। इस चुनाव के बाद गाजीपुर और मऊ में हिंदू मुसलमान वोटों का ध्रुवीकरण होने लगा। 2005 में जब मऊ में दंगे हुए थे तब मुख्तार खुली जीप में घूम रहा था। अक्टूबर 2005 में मुख्तार को दंगा करने के आरोप में जेल जाना पड़ा था। तब से वह जेल में हैं। 2008 में फिर बसपा में आ मिला। 2009 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मुख्तार को गरीबों का मसीहा बताया और दावा किया कि उसे आपराधिक मामलों में झूठा फंसाया गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार जेल में रहते हुए वाराणसी सीट से उम्मीदवार बना, लेकिन भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से हार गया। 2010 में मायावती ने मुख्तार के आपराधिक मामलों में लिप्त होने के बाद स्वीकार्य और उसे पार्टी से निकाल दिया। उसके बाद मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ मिलकर कौमी एकता दल नाम से नई पार्टी बनाई। इसी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 2012 में हुआ है। मऊ का विधायक बना। 2014 में उसने वाराणसी संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ लड़ने का ऐलान किया। बाद में यह दलील देकर पीछे हट गया कि इससे सांप्रदायिक आधार पर वोटों का विभाजन हो जाएगा। मुख्तार को 2016 में जब सपा में शामिल करने की बात आई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका कड़ा विरोध किया। तमाम कोशिशों के बाद भी अखिलेश उसे सपा में शामिल करने को लेकर राजी नहीं हुए। उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार के भाई अफजाल ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से बसपा के टिकट पर सांसद बने। हालांकि अब अंसारी परिवार का बसपा से मोहभंग हो चुका है। इंडिया टुडे से जुड़े विनय सुल्तान की रिपोर्ट के मुताबिक जून 2022 पंजाब के जेल मंत्री हरजोत सिंह बैंस विधानसभा में बजट सत्र के दौरान बोल रहे थे। बीच बहस में उन्होंने मुख्तार अंसारी का मुद्दा छेड़ दिया। भैस ने कहा, गैंगस्टर मुख्तार अंसारी पर मोहाली में एक जाली है। एफआईआर दर्ज करके पंजाब की जेल में रखा गया। उत्तर प्रदेश में उस गैंगस्टर पर 10 मुकदमे थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने पंजाब सरकार से 26 बार प्रोडक्शन वारंट पर उसे उत्तर प्रदेश ले जाने की इजाजत मांगी, लेकिन पंजाब सरकार ने इजाजत नहीं थी। उसे जेल में भी वीआइपी सुविधाएं दी गई थी। रोपड़ जेल की जीस बैरक में 25 कैदियों के रहने की जगह थी। वो अकेले मुख्तार के हवाले कर दी गई। हरजोत सिंह इस बयान के जरिए विपक्षी कांग्रेस को भी निशाने पर ले रहे थे क्योंकि तब राज्य में उसी की सरकार थी। भैस ने बताया कि उनके निर्देश के बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई। राजनीतिक खींचतान से इतर पुलिस की अबतक की जांच भी मुख्तार को लेकर रोपड़ जेल प्रशासन की भूमिका पर सवालिया निशान खड़ा करती है। पंजाब सरकार के से पता चला है कि ऊपर जेल की बैरक नंबर एक मुख्तार के आपराधिक साम्राज्य का अस्थायी हेडक्वाटर था। इस बैरक में मुख्तार को तमाम सुविधाएं उपलब्ध थी। उसे मोहाली में फिरौती के एक मामले में 24 जनवरी 2019 को पेशे के लिए पंजाब लाया गया था। पेशे के बाद मुख्तार को रोपड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया। यहाँ 2 साल तीन महीने तक रहा। इस दौरान उसका पूरा परिवार रोपण में ही एक किराये के मकान में रह रहा था। जहाँ से जुड़े सूत्रों के मुताबिक मुख्तार की बैरक में सिर्फ उसके परिवार के लोग ही जा सकते थे।जेल के स्टाफ को भी बैरक में जाने की इजाजत नहीं थे। हर दिन उससे मिलने के लिए बुरका पहने एक महिला जेल में जाती थी और घंटों बैरक के भीतर रहा करती थी। जहाँ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि ये महिला कोई और नहीं बल्कि मुख्तार की बेगम ते जेल में उनके आने जाने के दौरान सीसीटीवी कैमरा बंद रहा करते थे। ऐसा नहीं था कि उस समय हो रही अनियमितताओं पर किसी की नजर नहीं गई थी। 18 दिसंबर 2019 को रोपड़ के सेशन जज हरप्रीत कौर ने जेल का औचक निरीक्षण किया। वे जब बैरक नंबर एक के सामने पहुंची तो उन्होंने को अंदर से बंद पाया। उन्होंने मौके पर मौजूद जेल उपाधीक्षक जगदीश सिंह से इसका कारण पूछा। जवाब मिला कि बैरक में कुछ निर्माण कार्य चल रहा है, इसलिए दरवाजा नहीं खोला जा सकता। हरप्रीत ने पूरे वाकये को अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया जहाँ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि उस वक्त मुख्तार अंसारी की पत्नी जेल में मौजूद थे और इसके चलते बैरक का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया गया था। सेशन जो है जो हरप्रीतकौर ने बाद में इस मामले में एक विभागीय जांच के भी आदेश दिए। हालांकि जांच के बाद भी जेल विभाग ने सभी आरोपी जेल अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी थी। मुख्तार जीस तरह जेल को अपनी आरामगाह बनाए हुए था। वह सरकारी तंत्र की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था। पंजाब सरकार की इस जांच में अभी बात सामने आई कि मुख्तार अंसारी की तरफ से जेल में सुविधाएं अदा कराने के लिए पूरे जेल और उससे जुड़े प्रशासन और पुलिस तंत्र को सुविधा शुल्क पहुंचाया जाता था। जहाँ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मुख्तार दिल्ली में बैठे एक राजनेता के जरिए सूबे के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से संपर्क साधने में कामयाब रहा था। रोपड़ जेल में 2.25 साल रहने के दौरान मुख्तार को महज एक बार पेशी के लिए मोहाली ले जाया गया। पेशी पर ले जाने के लिए एक खास ऐम्ब्युलन्स का इस्तेमाल किया गया। जैसे मुख्तार के परिवार की तरफ से मुहैया कराया गया था। बात की जांच में पाया गया कि ऐम्ब्युलन्स फर्जी नाम से रजिस्टर कराई गई थी। इस ऐम्ब्युलन्स को उत्तर प्रदेश में रजिस्टर कराया गया था, जिसके चलते पंजाब पुलिस ने इसके खिलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया। फिलहाल मामले की जांच जारी है। पंजाब पुलिस के एक आला अधिकारी के अलावा स्पेशल डीजी जेल भी इस मामले की जांच कर रहे हैं। पंजाब सरकार के जेल मंत्री हरजोत सिंह का दावा है कि जांच में आगे और चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं।