काशीपुर में बिजली संकट भीषण गर्मी में बेहाल जनता, विभाग और जनप्रतिनिधि दोनों नदारद
अज़हर मलिक
उत्तराखंड के काशीपुर में इन दिनों बिजली संकट ने आम जनता का जीना मुहाल कर दिया है। तेज गर्मी से पहले ही लोग परेशान हैं और ऐसे में बिजली विभाग की मनमानी हालात को और बदतर बना रही है। बिजली कब जाएगी और कब आएगी, इसकी न तो कोई तय समय-सीमा है और न ही कोई सूचना। दिन हो या रात, बिजली बार-बार गायब हो रही है और विभाग पूरी तरह से बेफिक्र नजर आ रहा है।
दिन-रात मिलाकर जितने घंटे होते हैं, उससे ज्यादा बार बिजली गुल हो रही है। घरों में इनवर्टर जवाब दे चुके हैं, पंखों की हवा कम पड़ रही है और कूलर या एसी चलाना अब सपने जैसा लग रहा है। इस भीषण गर्मी में सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्गों, बीमारों और नवजात बच्चों को हो रही है, जो बिना बिजली के दमघोंटू माहौल में जीने को मजबूर हैं। वहीं, दुकानदार और कारोबारी भी इस कटौती से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। मशीनें बार-बार बंद हो रही हैं, ग्राहक टिक नहीं रहे, और डिजिटल लेन-देन लगातार बाधित हो रहा है।
इतना सब होने के बावजूद बिजली विभाग का रवैया बेहद लापरवाह है। न कोई हेल्पलाइन जवाब देती है, न कोई अधिकारी स्थिति स्पष्ट करता है। और इस पूरे मामले में जो सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाली बात है वो ये कि काशीपुर के जनप्रतिनिधि पूरी तरह से चुप हैं। जनता जिन नेताओं को चुनकर विधानसभा और नगर निकायों में भेजती है, वही अब संकट के समय नजर नहीं आ रहे। न कोई धरना, न कोई ज्ञापन, न कोई सवाल — मानो उन्हें काशीपुर की जनता की तकलीफ से कोई सरोकार ही नहीं।
विकास का दम भरने वाले नेता बिजली जैसी बुनियादी जरूरत पर मौन क्यों हैं? क्या उनकी जिम्मेदारी सिर्फ चुनावी मंचों तक सीमित है? जनता अब सवाल कर रही है कि जब बिजली संकट से उनकी ज़िंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है तो उनके चुने हुए प्रतिनिधि आखिर किसके लिए काम कर रहे हैं?
काशीपुर की जनता अब जागरूक हो चुकी है। अगर जल्द ही बिजली व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ और जिम्मेदारों की जवाबदेही तय नहीं हुई, तो ये गुस्सा जल्द ही जनविरोध में बदल सकता है। अब समय आ गया है कि ना सिर्फ विभाग को चेताया जाए, बल्कि उन जनप्रतिनिधियों से भी जवाब मांगा जाए जो सत्ता में रहते हुए भी जनता के संकट पर आंख मूंदे बैठे हैं।