कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल का तानाशाही फरमान छठी के छात्र को स्कूल से निकाला, सिर्फ एग्जाम देने की अनुमति

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कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल का तानाशाही फरमान छठी के छात्र को स्कूल से निकाला, सिर्फ एग्जाम देने की अनुमति

अज़हर मलिक

कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल में तब गंभीर विवाद पैदा हो गया जब कक्षा 6 के एक छात्र और उसकी अध्यापिका के बीच हुई मामूली कहासुनी अचानक बड़े विवाद में बदल गई। जानकारी के अनुसार, छठी कक्षा का छात्र कक्षा में बैठा था जब कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल की एक महिला शिक्षक ने उसे किसी बात पर टोका। शिक्षक की डांट पर छात्र का व्यवहार थोड़ा असहयोगात्मक रहा, जिसके बाद अध्यापिका ने उसे कड़ी फटकार लगाई और उसके पिता को बुलाने की चेतावनी दी। जैसे ही प्रिंसिपल मौके पर पहुंचे, तनाव और घबराहट में बच्चे ने शिक्षक पर हाथ उठाने की कोशिश कर दी, जो निश्चित रूप से गलत है और जिसकी निंदा की जानी चाहिए। लेकिन घटना के बाद स्कूल प्रबंधन ने जो फैसला लिया, उसने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल के संचालक और प्रिंसिपल ने तत्काल प्रभाव से छात्र को स्कूल से बाहर कर दिया और यह घोषणा कर दी कि अब पूरा साल उसे केवल परीक्षा देने के लिए ही स्कूल आने दिया जाएगा। स्कूल के इस फैसले से अभिभावक हैरान और परेशान हैं। सवाल यह है कि क्या किसी निजी स्कूल को इतना कठोर और मनमाना अधिकार है कि वह एक बच्चे को पूरा सत्र पढ़ने से ही वंचित कर दे? क्या शिक्षा विभाग के नियम-कायदों पर स्कूल प्रबंधन का निजी कानून भारी पड़ सकता है? छठी कक्षा के बच्चे की समझ और मानसिक परिपक्वता सभी जानते हैं—क्या उसकी गलती इतनी बड़ी थी कि उसे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित कर दिया जाए?

 

यह पहली बार नहीं है जब किसी निजी स्कूल ने इस तरह का एकतरफा फैसला लिया हो। हाँ, अनुशासन के लिए पनिशमेंट दिए जा सकते हैं पर वे भी कानूनी दायरे में रहते हुए, ताकि बच्चे सुधार का मौका पा सकें। मगर कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल का यह कठोर निर्णय कहीं न कहीं एक तानाशाही, अमानवीय और शिक्षा-विरोधी कदम के रूप में दिखाई देता है, जिसमें न बच्चे की भावनाओं का खयाल रखा गया और न उसके भविष्य की चिंता। स्कूल ने सुधारात्मक प्रक्रिया की जगह सीधे सख्त कार्रवाई अपनाई, जिससे यह निर्णय एक सज़ा से ज्यादा “भविष्य ख़तरे में डालने” जैसा प्रतीत हो रहा है।

 

मामले के बाद अभिभावकों ने अब कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता को लेकर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। अभिभावक यह पूछ रहे हैं कि क्या यहां कार्यरत शिक्षक B.Ed, D.El.Ed, UTET जैसी अनिवार्य योग्यताएँ पूरी करते हैं या नहीं। यदि नहीं, तो क्या बच्चों की शिक्षा ऐसे स्टाफ के हाथों सुरक्षित है? इससे आगे बढ़ते हुए अब स्कूल भवन की सुरक्षा पर भी उंगलियाँ उठ रही हैं। अभिभावकों का कहना है कि कविता मॉडर्न पब्लिक हाई स्कूल में आपातकालीन स्थिति में बच्चों को सुरक्षित निकालने की व्यवस्था कितनी मजबूत है, यह बड़ा सवाल है। क्या स्कूल में फायर सेफ्टी उपकरण मौजूद हैं, क्या भवन की सुरक्षा जांच समय-समय पर होती है, क्या बच्चों को सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है — इन सवालों के जवाब अभिभावकों को नहीं मिल पा रहे हैं।

 

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इन मुद्दों की जानकारी अभी तक जिम्मेदार शिक्षा अधिकारियों तक नहीं पहुंची है या फिर उन्होंने इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया है। निजी स्कूलों की मनमानी कब तक चलेगी? क्या शिक्षा विभाग ऐसे मामलों पर खुद निगरानी करेगा या फिर किसी बड़े हादसे या विवाद का इंतज़ार करेगा? एक छठी कक्षा के छात्र को पूरा सत्र शिक्षा से दूर कर देना न सिर्फ कठोर है बल्कि शिक्षा के असली उद्देश्य के भी बिल्कुल खिलाफ है। इस घटना ने साबित कर दिया है कि अब निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम और सक्रिय निगरानी की जरूरत है।

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