पर्दे में बेगम, मैदान में सोहर काशीपुर में चुनाव का नया खेल!
अज़हर मलिक
जनपद उधम सिंह नगर में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज है। उम्मीदवारों की भीड़ है, पोस्टरों की बाढ़ है और वादों की बारिश हो रही है, लेकिन इस चुनावी शोर में एक बेहद चौंकाने वाला और विचारणीय ट्रेंड सामने आया है – “पर्दे में बेगम और मैदान में सोहर”।
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में विशेष रूप से देखा जा रहा है कि कई जनप्रतिनिधि खुद चुनावी मैदान में उतरने के बजाय अपनी पत्नियों, बेटियों या बहनों को प्रत्याशी बना रहे हैं, लेकिन असली कमान खुद के हाथ में ही रखे हुए हैं। ना सिर्फ़ कमान, बल्कि प्रचार, रैली, जनसंपर्क – सब कुछ पुरुष कर रहे हैं। और रही बात महिला उम्मीदवार की, तो वो केवल नाम के लिए मैदान में हैं — ना पोस्टरों में चेहरा, ना पब्लिक के बीच आवाज। चुनाव लड़ रही हैं महिलाएं, लेकिन चुनावी गली में घूम रहे हैं पति, पिता और भाई। प्रचार में सिर्फ़ पुरुषों की तस्वीरें, भाषणों में सिर्फ़ पुरुषों की बातें, और जनता से सीधा संवाद भी सिर्फ़ उन्हीं का।
जब अब नहीं दिख रहीं, तो जीत के बाद कैसे दिखेंगी? जो जनता उन्हें जानती ही नहीं, वो कैसे भरोसा करे?
क्या यह जनता के अधिकार के साथ धोखा नहीं है? एक और चिंता की बात यह है कि कुछ क्षेत्रों में तो महिला प्रत्याशियों की तस्वीर तक फ्लेक्सी में नहीं लगाई जा रही। वे पर्दे में हैं, घर में हैं, और राजनीतिक मोहरे के रूप में सामने लाई गई हैं — सत्ता की भूख में नाम का इस्तेमाल और चेहरों को छुपाया जा रहा है।
जनता के बीच बहस चल रही है —
क्या यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ नहीं है?
क्या यह महिला सशक्तिकरण के नाम पर सिर्फ़ एक छलावा है? क्या ऐसे मामलों पर निगरानी नहीं होनी चाहिए? क्या सिर्फ़ नामांकन भर देना ही प्रतिनिधित्व मान लिया जाएगा, जब असली चेहरा जनता ने देखा ही नहीं? एक तरफ़ हम बात करते हैं “महिला आरक्षण” और सशक्तिकरण की, वहीं दूसरी तरफ़ कुछ लोग महिलाओं को सामने रखकर खुद कुर्सी का स्वाद चखना चाहते हैं।
उधम सिंह नगर में यह नया ट्रेंड चुनाव को घर की निजी राजनीति बना रहा है, और इस पर रोक नहीं लगी, तो लोकतंत्र सिर्फ़ नाम का रह जाएगा – चेहरा कोई और होगा, राज करेगा कोई और।
जनता को खुद से पूछना होगा —
क्या वो एक असली प्रतिनिधि चुन रही है? या सिर्फ़ नाम के आगे लगी “पत्नी/बेटी/बहन” की पहचान के पीछे छुपे लालच को वोट दे रही है?