केवल हिंसा या उत्पीड़न ही नहीं, अधिकारियों का भेदभावपूर्ण व्यवहार भी है मानवाधिकार हनन: अधिवक्ता नदीम उद्दीन

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केवल हिंसा या उत्पीड़न ही नहीं, अधिकारियों का भेदभावपूर्ण व्यवहार भी है मानवाधिकार हनन: अधिवक्ता नदीम उद्दीन

 

काशीपुर : मानवाधिकार हनन का अर्थ केवल अवैध हिंसा, बंदीकरण या शारीरिक उत्पीड़न तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी अधिकारियों या संस्थानों द्वारा किया गया भेदभावपूर्ण व्यवहार भी मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है। इस प्रकार के मामलों में भी मानवाधिकार आयोग और अन्य प्राधिकार संस्थाएं वैसी ही कार्रवाई कर सकती हैं जैसी अवैध हिंसा, बंदी या उत्पीड़न के मामलों में की जाती है।

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यह विचार सूचना अधिकार कार्यकर्ता एवं 45 कानूनी जागरूकता पुस्तकों के लेखक अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने अपनी नई पुस्तक ‘मानवाधिकार संरक्षण – नये आपराधिक कानून अपडेट सहित’ के विमोचन अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अपराध नियंत्रण, कानून में जनविश्वास और समाज में स्थायी शांति बनाए रखने के लिए मानवाधिकार संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

 

अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने कहा कि भारत ने “बदले के सिद्धांत” को नहीं, बल्कि “सुधारवादी सिद्धांत” को अपनाया है, क्योंकि प्रतिशोध से स्थायी शांति संभव नहीं होती। उन्होंने बताया कि भारत के कानून के अनुसार यदि कोई अधिकारी या व्यक्ति मानवाधिकारों का हनन करता है, तो उसे न केवल जेल की सजा हो सकती है, बल्कि नौकरी से बर्खास्तगी, अवैध संपत्ति की जब्ती और आयकर दंड जैसी कठोर कार्यवाहियों का भी सामना करना पड़ सकता है।

 

उन्होंने स्पष्ट किया कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार, स्वतंत्रता व सुरक्षा का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधि के समक्ष समानता, दासता और बलात श्रम का निषेध, यातना व उत्पीड़न से सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार को मौलिक मानवाधिकारों में शामिल किया गया है।

 

अधिवक्ता नदीम उद्दीन की ‘मानवाधिकार संरक्षण’ पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2004 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की 70 धाराओं और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की 26 धाराओं का विस्तृत उल्लेख किया गया है। पुस्तक के नवीनतम संस्करण में एल.एल.बी. कॉलेज टॉपर अधिवक्ता नीलिमा नदीम द्वारा नये आपराधिक कानूनों — भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) — से संबंधित तुलनात्मक विश्लेषण जोड़ा गया है।

 

इस पुस्तक के अध्यायों में मानवाधिकार की परिभाषा, पुलिस और मानवाधिकार हनन, राजस्व और टैक्स वसूली में मानवाधिकार उल्लंघन, पुलिस द्वारा किए जाने वाले अपराध, अवैध उत्पीड़न से बचाव, मानवाधिकार हनन के कारण और रोकथाम के उपाय, प्रथम अपराध पर सजा से राहत, किशोरों के लिए विशेष प्रावधान, तथा सूचना अधिकार के माध्यम से मानवाधिकार संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल किए गए हैं।

 

 

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