काशीपुर में राजनीति लौटी रंग में, पर कांग्रेस अब भी छाया में
अज़हर मलिक
काशीपुर की राजनीति ने आखिरकार वो करवट ली है, जिसका इंतज़ार जनता बरसों से कर रही थी। जनपद उधम सिंह नगर के अन्य शहरों में जब-तब राजनीति सड़कों पर उतर आती थी, कभी सरकार के समर्थन में तो कभी मुखर विरोध के साथ, तब काशीपुर एक ऐसा शहर था जहां राजनीतिक गतिविधियां मानो कोमा में चली गई थीं।
जनता ने जनप्रतिनिधियों को जरूर चुना था, लेकिन लंबे समय तक शहर इस भ्रम में ही रहा कि नेताओं का कोई अस्तित्व है भी या नहीं। कांग्रेस तो बस फोटोसेशन और मीडिया की सुर्खियों तक सीमित रह गई थी, जिससे आमजन में एक ठंडक सी भर गई थी कि शायद काशीपुर राजनीति के नक्शे से मिटता जा रहा है। लेकिन हाल ही में यह स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। जबसे महापौर की कमान दीपक वाली के हाथों में आई है और विधायक पद की जिम्मेदारी त्रिलोक सिंह चीमा ने संभाली है, शहर में राजनीति की एक नई लहर दौड़ गई है।
सड़कों पर नेताओं की मौजूदगी, बजट प्रस्तावों पर चर्चा, विकास योजनाओं का क्रियान्वयन और लोगों के छोटे-बड़े कामों को लेकर तेज़ी – इन सबने ये साबित कर दिया है कि अब काशीपुर भी राजनीति की मुख्यधारा में लौट चुका है। जनता न सिर्फ यह महसूस कर रही है, बल्कि स्वीकार भी कर रही है कि शहर में अब ऐसे नेता हैं जो सिर्फ तस्वीरों में नहीं, जमीन पर भी नज़र आ रहे हैं। हाईटेक प्लानिंग, स्मार्ट प्रोजेक्ट्स और सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन से लोगों में विकास को लेकर उम्मीद जगी है।
लेकिन इस पूरी राजनीति में जो सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है, वह कांग्रेस को लेकर है। एक समय देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस काशीपुर जैसे सक्रिय होते शहर में पूरी तरह से निष्क्रिय दिख रही है। न कोई प्रदर्शन, न कोई सवाल, न किसी योजना पर प्रतिक्रिया और न ही जनता से जुड़ने की कोई रणनीति — कांग्रेस का संगठन ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे किसी सौ साल के थके हुए बुजुर्ग को युवाओं की रेस में उतार दिया गया हो। जिस पार्टी को विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए थी, वह कहीं कोने में बैठी सुस्ता रही है। जबकि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी सत्ता पक्ष की, लेकिन काशीपुर में यह संतुलन बुरी तरह टूट चुका है। अगर कांग्रेस ने अब भी खुद को नहीं संभाला, तो जनता की नजरों से उसका पूरी तरह गायब हो जाना तय है।
इधर भाजपा के दोनों नेता विधायक त्रिलोक सिंह चीमा और महापौर दीपक वाली पूरी सक्रियता के साथ फील्ड में हैं और आमजन की समस्याओं को न सिर्फ सुन रहे हैं बल्कि उस पर एक्शन भी ले रहे हैं। हालांकि हालिया राजनीतिक गतिविधियों में यह भी देखा गया है कि दोनों नेताओं के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद की झलक भी देखने को मिल रही है, जो आने वाले समय में काशीपुर की राजनीति को और दिलचस्प बना सकती है। लेकिन फिलहाल, इतना तय है कि काशीपुर की कुंभकर्णी राजनीति जाग चुकी है । और अब जनता सिर्फ देख नहीं रही, उम्मीद भी कर रही है।