खाकी का दर्द वो रात जब सबके घरों में जल रहे थे दिए, और सड़कों पर खाकी निभा रही थी अपना फर्ज

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खाकी का दर्द वो रात जब सबके घरों में जल रहे थे दिए, और सड़कों पर खाकी निभा रही थी अपना फर्ज

अज़हर मलिक

काशीपुर में दीपावली की रात जब हर घर में खुशियों के दीए जल रहे थे, तब कुछ ऐसे चेहरे थे जो अपनी ड्यूटी निभाते हुए सड़कों पर तैनात थे।

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ये थे हमारे पुलिसकर्मी — जिन्होंने अपने परिवार से दूर रहकर शहर की शांति और सुरक्षा को बनाए रखने का जिम्मा उठाया। काशीपुर हिंसा के बाद जहां माहौल तनावपूर्ण था, वहीं पुलिस ने दीपावली की पूरी रात गश्त कर कानून-व्यवस्था को संभाले रखा। किसी ने अपने घर में बच्चों संग दीपावली नहीं मनाई, तो किसी ने मिठाई की जगह वायरलेस और हथकड़ी थामे रखी। उस रात जब लोग दीयों की रोशनी में सुकून पा रहे थे, तब खाकी उसी रोशनी को सुरक्षित रखने के लिए सड़कों पर खड़ी थी। फरार आरोपियों की तलाश में टीमें रातभर दबिशें देती रहीं, वरिष्ठ अधिकारी खुद चौक-चौराहों पर हालात पर नज़र रखे रहे। पुलिस की यही जिम्मेदारी और त्याग इस दीपावली की सबसे बड़ी मिसाल बन गई काशीपुर की जनता ने कहा — “खाकी का दर्द कोई नहीं जानता, लेकिन उसी खाकी ने हमारी दीपावली सुरक्षित बनाई।” सच ही कहा गया है, एक खाकी हजार काम है, क्योंकि वही खाकी है जो खुद अंधेरे में रहकर पूरे शहर में उजाला फैलाती है।

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