सरकारी दस्तावेजों मे चरती रही गाय भैंस कॉर्बेट नेशनल पार्क रामनगर में अजब गजब कारनामा
आज हम आपको एक ऐसी हकीकत से रूबरू कराने जा रहे है जिसको सुनकर आप भी दंग रह जायगे मामला कॉबेट नेशनल पार्क की झिरना रेंज से जुड़ा एक ऐसा अजब गजब कारनामा सामने आया है। जिसको सुनकर आप भी चौक जायगे।
कॉबेट नेशनल पार्क की रेंज झिरना मे लगभग वन गुर्जरो के लगभग 24 परिवार की परमिशन थी लेकिन उसमे से लाभग 18 लोग कई बर्षो पहले कॉबेट नेशनल पार्क की झिरना रेंज को छोड़कर डिवीजन बिजनौर रेज अमानगढ़ उत्तर प्रदेश और तराई पष्चिमी डिवीजन रामनगर उत्तराखण्ड की रेंज आमपोखरा, फाँटो टूरिस्ट जोन और रेंज रामनगर के जंगलो मे आकर अपना वर्चस्व जमा लिया और मात्र 6 परिवार ही झिरना रेंज कॉबेट नेशनल पार्क मे स्थाई रूप से निवास करते आ रहे है।
झिरना छोड़ चुके लगभग 18 परिवारो की चराई स्थानीय कर्मचारियो और अधिकारियो से मिलकर जमा होती रही और किस अधिकारी के संरक्षण मे ये सारा खेल चल रहा था आखिर क्यों फर्जी तरीके से वन गुर्जरो को सरकारी दस्तावेजों मे झिरना रेंज मे निवास करता हुआ दिखाया जा रहा था ये जांच का विषय है झिरना रेंज छोड़ चुके वन गुर्जरो के रासुक के आगे कॉबेट नेशनल पार्क के वन गुर्जरो के आगे कॉबेट नेशनल पार्क के अधिकारी थर थर कापते है। या खेल पैसा का था ये बात जांच का विषय है।
लेकिन ये बात जानकर आप भी हैरान रह जायगे की कई बर्ष पहले कॉबेट नेशनल पार्क को छोड़ चुके वन गुर्जरो की भैंस और गाये झिरना रेंज के अधिकारियो के सरकारी दस्तावेजो मे चरती रही और अधिकारी वन गुर्जरो से भैसों और गाये के मुँह चूगान का शुल्क लेते रहे है वही दूसरी और इन वन गुर्जरो की भैंस और गाये वास्तव मे अमानगढ़ रेंज उत्तर प्रदेश और तराई पष्चिमी डिवीजन रामनगर उत्तराखण्ड के जंगलो मे आज भी चरती है
जंगलो मे उगने वाली वनस्पतियो को खाती लेकिन मुँह चूगान का शुल्क कॉबेट नेशनल पार्क की झिरना रेंज के अधिकारी बसूल करते है ये शातिर वन गुर्जर यही नहीं रुके इन्होने कॉबेट नेशनल पार्क की रेज झिरना मे रहने के लिए सुप्रीम कोर्ट से स्टे लिया और फिर विस्तापन की मांग को लेकर अड़ गए। बर्षो पहले कॉबेट नेशनल पार्क की रेंज झिरना छोड़ चुके वन गुर्जरो की भैंस और गाय झिरना रेंज के अधिकारीयो के कार्यालय सरकारी दस्तावेजों मे चरती रही और पशओ के मुँह चूगान का शुल्क भी अधिकारी जमा करवाते रहे। इस पुरे खेल मे कॉबेट नेशनल पार्क के अधिकारी शामिल है। इन दोषी कर्मचारियों और अधिकारियो पर कार्यवाही करने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है
अब आप सोच रहे होंगे की इसमें गलत क्या तो बस आप यही पर चूक गए दरसल खेल यही से शुरू होता है खेल था उत्तराखण्ड सरकार और कॉबेट नेशनल पार्क की आँखों मे धूल झोक कर सरकार से विस्थापन के नाम मे या तो मोटी रकम या जमीन लेना था। वो अपने ऐसा पुरे खेल मे कामयाब भी हो गए थे लेकिन विस्थापन के लिए वन गुर्जरो को मुआवजा देने के लिए सर्वे करने पहुंची कॉबेट की टीम मौके पर पहुंची तो वहाँ मात्र 6 परिवार ही निवास करते पाये गए और पूरा खेल खुल गया और 24 परिवारों से मात्र 6 परिवारो का ही नाम विस्थापन सूची मे सामने आया है।
एक वन गुर्जर अपने स्तेमाल के लिए चार से पांच झोपड़ीयो का निर्माण करता है झिरना मे भी यही था लेकिन जब भी कोई टीम झिरना मे जाती तो ये शातिर वन गुर्जर अपने छाप्परौ मे से सबके एक एक छपरा को गिनवा कर 24 परिवार पुरे करवा देते थे और सरकारी दस्तावेजों मे 24 परिवार झिरना मे निवास करते आ रहे थे इस बात की जानकरी स्थानीय अधिकारियो और कर्मचारीयो भली भाती थी लेकिन ये राज़ खुलने के बाद स्थानीय कॉबेट प्रशासन की कार्यशैली पे सांवलिया निशान खड़े होते है। विस्थापन सर्वे मे लगभग 18 परिवारों को मौके पर ना होने का सच सामने आने के बाद सरकार को करोड़ों रूपये का चुना लगने से बच्चे गया है।
लेकिन विश्वासनीय सूत्र बताते है की झिरना रेंज को छोड़ चुके वन गुर्जर को दोवारा झिरना रेंज मे स्थानीय कर्मचारियों और अधिकारियो से मिलकर छप्पर बनाने के लिए सडयंत्र रच रहे है। अब देखना होगा की ये सडयंत्र कितना कामयाब होता है ये तो आने वाला वक्त ही बताया।
गेंडी खत्ता ग़ुज्जर वस्ती मे जिन वन गुर्जरो को विस्थापन मे जमीन मिली है उसपे भी समय समय पर लोग घोटाले का आरोप लगाते रहे है लोग का कहना है की जब वन गुर्जरो का विस्थापन होने की सूची बनी तो उसके उत्तर प्रदेश के सैकड़ो वन गुर्जरो ने फर्जी तरीके से अपने नाम दर्ज करवा दिये और आज जमीनों के मलिक बन बैठे है तो कही कॉबेट नेशनल पार्क मे भी यही तो नहीं होने वाला है।