रामनगर में फूटा दशकों का दर्द: वन ग्रामों और सरकारी भूमि पर बसे ग्रामीणों ने मालिकाना हक की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ किया प्रदर्शन
सलीम अहमद साहिल
उत्तराखंड के रामनगर में आज दशकों से दबी हुई पीड़ा सड़कों पर फूट पड़ी। वन ग्रामों, खत्तों और अन्य सरकारी भूमि पर पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन गुजार रहे सैकड़ों ग्रामीणों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ तहसील मुख्यालय पर जमकर प्रदर्शन किया। मालिकाना हक संघर्ष समिति के बैनर तले एकजुट हुए ग्रामीणों ने सरकार से मांग की कि उन्हें राजस्व ग्राम का दर्जा देकर जमीनों पर मालिकाना हक प्रदान किया जाए, ताकि उनके जीवन में स्थायित्व और सम्मान की रोशनी आ सके।
रामनगर की सड़कों पर आज असंतोष और उम्मीद दोनों का सैलाब उमड़ा। मालिकाना हक संघर्ष समिति के नेतृत्व में ग्रामीणों ने रैली निकालते हुए तहसील मुख्यालय तक पैदल मार्च किया और नारेबाजी के जरिए अपनी आवाज बुलंद की। इन ग्रामीणों का कहना है कि वे पीढ़ियों से जंगलों और सरकारी भूमि पर बसे हुए हैं, लेकिन आज तक उन्हें न तो सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलीं, न ही उनके आशियानों को वैधानिक दर्जा।
ग्रामीणों ने भावुक होकर कहा कि यह विडंबना है कि उन्हें विधायक और सांसद चुनने का अधिकार तो है, पर अपने ही गांव का प्रधान चुनने का हक नहीं। यह लोकतंत्र की मूल भावना के साथ अन्याय है।
मालिकाना हक संघर्ष समिति के अध्यक्ष एस. लाल ने कहा कि “हमारे बुजुर्गों ने जिन जंगलों को बसाया, जिन खेतों को सींचा, आज उन्हीं जमीनों पर हमारा हक अस्थिर बना हुआ है। सरकार हमें वोट बैंक की तरह तो देखती है, लेकिन इंसान की तरह नहीं।”
उन्होंने कहा कि सरकार की लापरवाह नीतियों के कारण वन ग्रामों और खात्तों में रहने वाले लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। उनके बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी आवश्यक सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जल्द ही उनकी मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाया तो आंदोलन को प्रदेशव्यापी स्वरूप दिया जाएगा।
लोगों का कहना है कि दशकों से सरकारी भूमि पर बसे हजारों परिवार अब भी “अतिक्रमणकारी” कहे जाते हैं, जबकि उन्होंने अपने खून-पसीने से वहां घर बनाए, खेत जोते और गांव बसाए। अब वे चाहते हैं कि उन्हें मालिकाना हक मिले और “उजाड़ दिए जाने” के डर से मुक्ति।
प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम ज्ञापन एसडीएम को सौंपा, जिसमें मांग की गई कि वन ग्रामों और सरकारी भूमि पर बसे गांवों को तत्काल राजस्व ग्राम घोषित किया जाए, ताकि ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं का लाभ मिल सके और उनका भविष्य सुरक्षित हो सके।
सभा में समिति के अध्यक्ष एस. लाल, मोहम्मद ताहिर, संजय वोरा, पी.सी. वोरा (पूर्व उपाध्यक्ष – अनुसूचित जाति आयोग), रमेश चंद्र, पुष्कर लाल, चंदन राम, विनोद कुमार, गुलाम नवी, अली हुसैन, वजीर, राम सिंह, रवि कुमार, गोरा देवी, शारदा देवी, तुलसी देवी, किशोर कुमार, ललित केडाकोटी समेत बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।
रामनगर के इन वन ग्रामों और खात्तों में रहने वाले लोग आज भी “विकास के नक्शे” से बाहर हैं। न सड़क, न बिजली, न अधिकार — बस उम्मीद है कि एक दिन उन्हें भी अपने गांव का “राजस्व ग्राम” का दर्जा मिलेगा और वे पंचायत चुनावों में अपनी भागीदारी निभाकर अपने ही गांव का प्रधान चुन सकेंगे। लेकिन जब तक यह उम्मीद हकीकत नहीं बनती, तब तक यह संघर्ष — मालिकाना हक और सम्मान की लड़ाई — जारी रहेगी।