जंगलों के रक्षक या नियमों के भक्षक? बिना परमिट सफारी में गाड़ियां भेजकर बदनाम हो रहा वन विभाग, अधिकारी ही बन गए दलाल

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जंगलों के रक्षक या नियमों के भक्षक? बिना परमिट सफारी में गाड़ियां भेजकर बदनाम हो रहा वन विभाग, अधिकारी ही बन गए दलाल

अज़हर मलिक  / सलीम अहमद साहिल 

रामनगर तराई पश्चिमी डिवीजन : जहां एक ओर उत्तराखंड सरकार इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर वन विभाग के कुछ जिम्मेदार अफसर ही इस संकल्प को पलीता लगाने में जुटे हैं। तराई पश्चिमी वन प्रभाग में बने हाथी डगर और फाटो जोन जैसे इको-सफारी क्षेत्र बिना परमिट गाड़ियों की धड़ल्ले से एंट्री का अड्डा बन चुके हैं — और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस पूरे खेल में खुद विभागीय अधिकारी शामिल बताए जा रहे हैं।

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नाम सामने आया है ‘दर्शन अधिकारी’ का, जो वन विभाग में प्रशासनिक पोस्ट पर कार्यरत हैं।

इनकी गाड़ी — UK 19 TA 0839 — लगातार बिना परमिट के जंगलों में प्रवेश करती देखी गई है। यही नहीं, वरिष्ठ सहायक राम सिंह रावत पर भी ऐसे ही आरोप लगे हैं कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बिना अनुमति के वाहन सफारी ज़ोन में भेज रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, ये दोनों अधिकारी कई बाहरी गाड़ियों को भी अपने संपर्क में रखते हैं और उन्हें जंगल में प्रवेश दिलवाते हैं — बिना किसी वैध परमिट के। और होता है पैसों का खेल

 

 

जब वाहन बिना परमिट के जंगल में घुसते हैं, तो उससे न सिर्फ वन्यजीवों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि सरकार को मिलने वाला वैध राजस्व भी डकार लिया जाता है। और जब ये अवैध गतिविधियां विभाग के अंदर बैठे जिम्मेदार अफसरों की मिलीभगत से हो रही हों, तो सवाल केवल सिस्टम पर नहीं, बल्कि जवाबदेही पर भी उठता है।

 

 

वन विभाग के उच्च अधिकारी डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि वे सब कुछ जानते हुए भी अब तक इन पर कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर पाए। क्या वे दबाव में हैं? या फिर विभाग के भीतर फैले इस कथित भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि चाहकर भी कोई कुछ नहीं कर पा रहा?

 

खास बात ये कि सूत्रों के अनुसार, यही लोग कुछ मीडिया कर्मियों से संपर्क में भी रहते हैं, और उन्हीं के ज़रिए विभाग की नकारात्मक खबरें बाहर भेजते हैं।

पहले कुछ गाड़ियों को बिना परमिट भेजते हैं फिर कुछ पत्रकारों को सूचना देते हैं। ताकि विभाग पर बदनामी और दबाव दोनों बने रहें।

 

 

 

 

जब जिन पर जंगल की रक्षा का जिम्मा हो, वही नियमों से खेल करें — तो इको-टूरिज्म सिर्फ दिखावा बनकर रह जाता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इस मामले में त्वरित जांच बैठाए, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करे और जंगलों के भीतर पनप रही इस ‘भीतरघात’ की जड़ों को उखाड़ फेंके।

 

वरना एक दिन ऐसा भी आएगा, जब जंगल के जानवर तो बच जाएंगे, लेकिन विभाग की साख पूरी तरह जंगल में खो जाएगी।

 

 

 

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