घी संक्रांति: उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और विज्ञान का अद्भुत संगम

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घी संक्रांति: उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और विज्ञान का अद्भुत संगम

                   सलीम अहमद साहिल

 

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उत्तराखंड की लोक परंपराएं केवल रीति-रिवाज भर नहीं, बल्कि पहाड़ी जीवन की आत्मा हैं। इन्हीं में से एक है घी संक्रांति—जिसे कुमाऊं अंचल में ओलगिया, घ्यू संग्यान या घिया संग्यान के नाम से भी जाना जाता है। भाद्रपद मास की प्रथम तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व, केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकजुटता, लोकविज्ञान और पारंपरिक खानपान से जुड़ा एक बड़ा उत्सव है।

 

क्यों मनाई जाती है घी संक्रांति?

 

स्थानीय मान्यता है कि इस दिन घी का सेवन करना अनिवार्य है। लोग मानते हैं कि जो इस दिन घी नहीं खाता, उसे अगले जन्म में गनेल (घोंघा) की योनि मिलती है। हालांकि, लोककथाओं के पीछे गहरी वैज्ञानिक समझ भी छिपी है। बरसात के मौसम में जब पशु-चारा प्रचुर मात्रा में मिलता है, तब दूध, दही और घी से शरीर को आवश्यक पोषण देना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। यही कारण है कि यह पर्व भोजन और सेहत से भी जुड़ा है।

 

‘ओलग’ देने की प्रथा

 

कुमाऊं में घी संक्रांति को ओलगिया भी कहा जाता है। ओलग का अर्थ है—विशेष भेंट। इतिहासकार मानते हैं कि चंद शासकों के काल में कृषक और पशुपालक अपने स्वामी, पुरोहित और स्थानीय शासनाधिकारियों को खेतों की उपज, दूध-दही, मक्खन और शाक-सब्जियां भेंट स्वरूप प्रस्तुत करते थे। यह परंपरा आज भी जीवित है। गांवों में लोग रिश्तेदारों और पुरोहितों को घी-दूध, भुट्टे और अरबी के पत्ते भेंट करते हैं।

 

परंपरा में विज्ञान की झलक

 

घी संक्रांति का स्वरूप केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है। इसमें लोक विज्ञान की गहरी समझ झलकती है।

 

अरबी के पत्ते (गाबे)—इसमें मौजूद पोषक तत्व बरसात के मौसम में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं।

 

घी और मक्खन—ऊर्जा व पोषण का प्रमुख स्रोत, जो पहाड़ी जीवन की कठोर परिस्थितियों में बेहद जरूरी है।

 

बेड़ू रोटी—उड़द की दाल से बनी यह रोटी उच्च प्रोटीनयुक्त होती है और मक्खन/घी के साथ मिलकर संतुलित आहार प्रदान करती है।

 

 

सामाजिक एकजुटता का पर्व

 

इस दिन महिलाएं अपने बच्चों के सिर पर मक्खन लगाकर उनके स्वस्थ और दीर्घजीवी होने की कामना करती हैं। गांवों में लोग देवताओं और पुरोहितों को ‘ओलग’ देकर आपसी संबंध मजबूत करते हैं। यह त्योहार सिर्फ खानपान का नहीं बल्कि रिश्तों को संजोने और सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का माध्यम भी है।

 

संस्कृति की धरोहर

 

उत्तराखंड के लिए घी संक्रांति केवल भोजन का पर्व नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक पहचान है। यह परंपरा बताती है कि किस तरह हमारे पूर्वजों ने त्योहारों के माध्यम से कृषि, पशुपालन और खानपान की वैज्ञानिक समझ को समाज में स्थापित किया।

 

आज जब आधुनिकता लोक परंपराओं को पीछे छोड़ रही है, ऐसे में घी संक्रांति जैसी सांस्कृतिक धरोहर हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है और याद दिलाती है कि परंपराओं में ही जीवन का विज्ञान और समाज का सामंजस्य छिपा है।

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