वन निगम में बड़ी सेटिंग! 44 नग साल की लकड़ी के साथ पकड़ा ट्रक, छोटे कर्मियों पर कार्रवाई कर बचाया गया तस्करी तंत्र?
उत्तराखंड के तराई पश्चिमी वन प्रभाग में एक बार फिर वन तस्करी का मामला सामने आया है, लेकिन इस बार मामला जितना बड़ा है, उतनी ही चालाकी से उसे दबाने की कोशिश भी की जा रही है। बैलपड़ाव चेकपोस्ट पर जब एक ट्रक (UP-25BT-6927) को एसडीओ किरन शाह ने रोका, तो उसके भीतर वह सच छिपा था जिसे छुपाने की योजना ऊपर से नीचे तक चली थी। ट्रक में रवन्ने के मुताबिक 180 नग लकड़ी होनी चाहिए थी, लेकिन जब गिनती की गई तो उसमें 224 नग साल की कीमती लकड़ी निकली — यानी 44 नग अतिरिक्त। यही नहीं, उनमें से 7 नग ओवरसाइज़ प्रकाष्ठ के भी थे। सवाल यह नहीं है कि ट्रक पकड़ा गया, असली सवाल यह है कि वह इतनी आसानी से निकला कैसे?
चौंकाने वाली बात यह है कि यह ट्रक चांदनी डिपो से निकला था, और इसी डिपो के चार कर्मचारियों को डीएसएम सावित्री गिरि ने निलंबित कर दिया — जिनमें डिपो अधिकारी उमेश भट्ट, प्लाट प्रभारी बालम सिंह बिष्ट, सह प्लाट प्रभारी अमन और एक आउटसोर्स कर्मचारी गौरव सती शामिल हैं। पहली नजर में लग सकता है कि विभाग ने सख्त कार्रवाई की, लेकिन असली खेल यहीं शुरू होता है। क्या इतने बड़े घोटाले में सिर्फ चार कर्मचारी ही दोषी थे? क्या इतनी बड़ी तस्करी डिपो से बिना ऊपर की मिलीभगत के निकल सकती थी? और सबसे बड़ा सवाल — क्या यह कार्रवाई महज़ औपचारिकता नहीं है?
सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश लंबे समय से लकड़ी की सप्लाई हो रही है। समय-समय पर पुलिस ने ऐसे वाहनों को पकड़ा भी है, लेकिन हर बार विभाग बच निकलता है और सिर्फ दिखावटी निलंबन कर केस ठंडे बस्ते में चला जाता है। ट्रक में ओवरसाइज लकड़ी का मिलना दर्शाता है कि डिपो में मापदंडों की अनदेखी की गई। रवन्ना में 180 और ट्रक में 224 नग मिलना, इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि दस्तावेज़ों में हेरफेर किया गया। यानी पूरा सिस्टम ही सवालों के घेरे में है।
अगर वन विभाग वाकई ईमानदार है, तो अब सिर्फ निलंबन से काम नहीं चलेगा। ज़रूरत है एक विशेष जांच टीम की जो पिछले 6 महीने से साल भर के सभी रवन्नों की जांच करे, उत्तर प्रदेश भेजे गए हर ट्रक के वजन, गिनती और साइज का मिलान करे और पुलिस द्वारा पूर्व में पकड़े गए मामलों को फिर से खोले। लेकिन जब तक जांच केवल कागज़ों में होगी, और तस्करी की जड़ें बचा ली जाएंगी, तब तक ये खेल चलता रहेगा और जंगल कटते रहेंगे।
फिलहाल सवाल जनता का है, जवाब वन निगम को देना है।