जंगलों में मटर प्लांट का जहर वन्यजीवों और पर्यावरण पर मंडराता खतरा
सलीम अहमद साहिल
तराई पश्चिमी डिवीजन और कॉर्बेट नेशनल पार्क की ढेला रेंज सहित कई जंगलों में मटर के छिलके के नाम से जानी जाने वाली एक खतरनाक समस्या सिर उठा रही है। यह छिलका कुंडा, हल्दुआ, गाड़ीनेगी, महुआखेड़ा, और बाजपुर जैसे मटर प्लांट से निकलता है और आरक्षित वन क्षेत्र के गुर्जर समुदाय इसे अपने मवेशियों को खिलाने के लिए जंगलों में ले जाते हैं।
मटर के इन छिलकों में मौजूद खतरनाक केमिकल न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि वन्यजीवों के जीवन पर भी गंभीर संकट पैदा कर रहा है। जहां इसका पानी गिरता है, वहां की घास तक जलकर राख हो जाती है। जो मटर का छिलका बच जाता है, उसे जंगलों में फेंक दिया जाता है, जिससे जंगल प्रदूषित हो रहे हैं और वन्यजीव इस जहरीले छिलके को खाकर बीमार हो रहे हैं।
वन्यजीव संरक्षण के लिए जिम्मेदार वन विभाग इस खतरे से अनजान या फिर अनदेखा करता हुआ नजर आ रहा है। विभाग यह समझने को तैयार नहीं है कि मटर का छिलका वन्यजीवों और पारिस्थितिकी के साथ किस हद तक खिलवाड़ कर सकता है।
अगर समय रहते इन मटर प्लांट से निकलने वाले छिलकों को जंगलों में पहुंचने से नहीं रोका गया, तो इसके परिणाम भयानक हो सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इस छिलके से वन्यजीवों में बीमारियां फैलने और बड़ी संख्या में मौतें होने का खतरा है।
हमारी अगली रिपोर्ट में इन छिलकों के कारण होने वाली बीमारियों और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का गहराई से विश्लेषण करेंगे। सवाल यह है कि क्या वन विभाग और प्रशासन समय रहते इस गंभीर समस्या का समाधान करेगा, या फिर जंगल और वन्यजीवों का भविष्य अंधकार मय हो जाएगा?