जो खुद को मालिक बताता रहा, कोर्ट ने बता दिया अवैध कब्जेदार! रामनगर कांग्रेस कार्यालय पर नीरज अग्रवाल की ‘कहानी’ अब सवालों में
रामनगर में कांग्रेस कार्यालय को लेकर जो कहानी अब तक चुपचाप चल रही थी, वह अब पूरी तरह उजागर हो चुकी है। हाईकोर्ट के आदेश ने यह साबित कर दिया है कि नीरज अग्रवाल का उस भवन पर कोई वैध हक नहीं था।
लेकिन सवाल यह है कि अगर लीज 90 साल की थी जो पहले ही खत्म हो चुकी थी, तो आखिर किस अधिकार से नीरज अग्रवाल ने रातों-रात उस भवन पर कब्जा कर लिया? और किसने प्रशासन को इशारा किया कि कानूनी प्रक्रिया के बिना कांग्रेस कार्यालय को खाली कराया जाए और उसे किसी निजी व्यक्ति को सौंप दिया जाए? ये वही कार्यालय है, जहां कभी राजनीतिक गतिविधियां हुआ करती थीं और जो नगर पालिका की संपत्ति थी। लेकिन मार्च 2025 में अचानक सब कुछ बदल गया। प्रशासन की चुप्पी के बीच, एक रात कांग्रेस कार्यालय पर ताला तोड़ा गया, सामान हटाया गया और उस पर नीरज अग्रवाल ने अपना ‘कब्जा’ जमा लिया। सवाल ये भी है कि क्या इस पूरी कार्रवाई में किसी अधिकारी की मिलीभगत थी?
क्या नीरज अग्रवाल ने जानबूझकर खुद को मालिक साबित करने की कोशिश की जबकि उनके नाम की लीज समाप्त हो चुकी थी? कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तब विरोध भी किया था, लेकिन उनकी आवाज प्रशासनिक मशीनरी की शांति में दबा दी गई। अब हाईकोर्ट के आदेश ने सारी परतें खोल दी हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि यह संपत्ति राज्य सरकार और नगरपालिका की है, और इसे नीरज अग्रवाल को सौंपना अवैध है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है
कि भवन को तुरंत प्रभाव से सरकार अपने कब्जे में ले। इस फैसले ने न सिर्फ नीरज अग्रवाल की ‘मालिकाना कहानी’ को ध्वस्त किया है, बल्कि यह भी संदेश दिया है कि रातों-रात कानून को मोड़ने की जो कोशिश की गई, वह अब टिक नहीं पाएगी। यह खबर अब केवल एक जमीन के टुकड़े की नहीं, बल्कि एक मिसाल है – कि चाहे कोई कितना भी रसूखदार क्यों न हो, कानून से बड़ा कोई नहीं।