प्रकृति की गोद में एक नया सवेरा ला रहे हैं डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य
अज़हर मलिक
उत्तराखंड के तराई पश्चिमी डिवीजन के जंगलों में नई उम्मीदों की रोशनी फैला रहे हैं डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य। उनकी दूरदर्शी सोच, मेहनत और समर्पण ने इस क्षेत्र की खूबसूरती को नया आयाम दिया है। जंगलों को संरक्षित रखने के साथ-साथ उन्होंने इको-टूरिज्म और रोजगार सृजन के जरिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ‘पलायन रोकथाम’ के सपने को साकार करने का बीड़ा उठाया है। उनकी कार्यशैली न केवल पर्यावरण संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण है, बल्कि इसे आर्थिक और सामाजिक उत्थान का माध्यम भी बनाया गया है।
डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य ने जंगलों की प्राकृतिक सुंदरता को संरक्षित रखने के साथ ही उसे पर्यटन के लिए और आकर्षक बनाने का काम किया है। उन्होंने जंगलों के अंदर इको-टूरिज्म के तहत कई योजनाएं लागू कीं, जिनसे क्षेत्र में पर्यटकों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। जंगल के अनछुए कोनों को पर्यटकों के लिए सुलभ बनाते हुए उनकी सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन का भी ध्यान रखा गया है। उनके प्रयासों ने जंगलों को एक नई पहचान दी है, जहां पर्यटक प्रकृति की गोद में सुकून और रोमांच का अनुभव कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पलायन रोकने के विजन को साकार करने के लिए डीएफओ आर्य ने स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। उन्होंने जंगलों के आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए विशेष जॉन बनाए। यहां पर्यटकों को सुविधाएं देने के लिए स्थानीय लड़के-लड़कियों को प्रशिक्षित किया गया, जिससे न केवल पलायन कम हुआ, बल्कि स्थानीय समुदाय का जीवन स्तर भी सुधरा।
जंगलों की सुरक्षा को लेकर डीएफओ आर्य का रुख बेहद सख्त रहा है। उन्होंने जंगलों में अवैध कब्जों और अतिक्रमण के खिलाफ बेदखली नोटिस जारी किए और ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई की। उनकी सख्ती और तत्परता ने यह सुनिश्चित किया कि जंगलों की संपदा सुरक्षित रहे और उनकी जैव विविधता को किसी प्रकार का नुकसान न हो। इसके साथ ही, जंगलों की सफाई और बेहतर रखरखाव के लिए भी विशेष योजनाएं लागू की गईं।
डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य की मेहनत और दूरदर्शी सोच ने न केवल तराई पश्चिमी डिवीजन के जंगलों को खूबसूरत बनाया है, बल्कि उत्तराखंड के नाम को भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। उनके प्रयासों की सराहना न केवल प्रशासन बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा भी की जा रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके प्रयासों ने जंगलों में नई जान फूंकी है।
तराई पश्चिमी डिवीजन के जंगल आज उनकी योजनाओं और मेहनत का परिणाम हैं। उनका समर्पण और काम करने का तरीका यह साबित करता है कि अगर नेतृत्व मजबूत और दृष्टि साफ हो, तो कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है। डीएफओ आर्य ने अपने काम से न केवल जंगलों को संरक्षित किया है, बल्कि उन्हें उत्तराखंड की पहचान और गौरव का प्रतीक बना दिया है।