सपा की गुटबाजी रुचिवीरा को भारी पड़ेगी ? मुस्लिम समुदाय भी पूरी तरह नही है साथ

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सपा की गुटबाजी रुचिवीरा को भारी पड़ेगी ? मुस्लिम समुदाय भी पूरी तरह नही है साथ

यामीन विकट

ठाकुरद्वारा :  तो क्या इस बार एस टी हसन का टिकिट कटना और सपा की अंदरूनी कलह, तथा भाजपा का चुनाव लड़ाने का तरीका गठबंधन प्रत्याशी को भारी पड़ सकता है।

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लोकसभा चुनाव में गठबंधन प्रत्याशी रुचिवीरा को एस टी हसन का टिकिट काटकर मैदान में उतारा गया है इससे सपा के बीच एक ऐसा माहौल बना है जो आने वाले समय में सपा कांग्रेस गठबंधन को भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। आपसी फूट भी साफ दिखाई दे रही है इसी टिकिट को लेकर चर्चा ये भी है कि अखिलेश यादव एस टी हसन को ही टिकिट देना चाहते थे लेकिन आज़म खान की ज़िद के चलते उन्हें अपना निर्णय बदलना पड़ा और एन वक्त पर एस टी हसन को किनारे कर दिया गया तथा रुचिवीरा को प्रत्याशी बनाया गया।

 

 

 

इससे साफ है कि बहुत से ऐसे सपा कार्यकर्ता हैं जो एस टी हसन से प्यार करते हैं और उनसे लगाव रखते हैं या चाहते थे कि एस टी हसन को ही टिकिट मिले ज़ाहिर है कि वो खुश नहीं हो सकते हैं और अपनी बात को सही साबित करने के लिए हर सम्भव प्रयास भी करेंगे कि जब टिकिट उनकी मर्ज़ी से नही मिला है तो चुनाव परिणाम भी इसके विपरीत ही हों। ये बात कडुवी ज़रूर है लेकिन सच्चाई यही है कि आज की तारीख में सपा दो खेमों में बंटी हुई है और उसके अंदर कलह जोरो पर है। मुरादाबाद और उसके आसपास के लोगों का कहना है कि रुचिवीरा बाहरी प्रत्याशी हैं जबकि एस टी हसन ने अनेकों मौकों पर सदन के भीतर क्षेत्र की आवाज़ उठाने का काम किया है।

 

 

 

मुस्लिम बाहुल्य सीट माने जाने वाली मुरादाबाद लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा प्रत्याशी और पूर्व सांसद कुँवर सर्वेश कुमार चुनाव मैदान में हैं जो मुस्लिम समुदाय के बीच भी अपनी बहुत अच्छी पकड़ रखते हैं ये पकड़ किसी पार्टी की नही बल्कि उनकी खुद की है और इस बार तो अनेक गांवों में लोगों ने खुलेआम उन्हें वोट देने की बात कहनी शुरू भी कर दी है। उधर भाजपा इस बार जिस ढंग से चुनाव मैदान में उतरी है वो तरीका भी बड़ा अच्छा है।

 

 

 

 

भाजपा पिछले एक साल से लोकसभा चुनाव को बूथ स्तर पर लड़ने की तैयारी करती आ रही है और उसके कार्यकर्ता गांव गांव जाकर बड़े स्तर पर मेहनत कर रहे हैं जिससे साफ तौर पर लगता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की मेहनत और सपा कार्यकर्ताओं के बीच की गुटबाजी इस बार कुछ और ही गुल खिलाएगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सपा की अंदरूनी गुटबाजी और ऊपर से सपा से इस बार मुस्लिमो की नाराजगी चुनाव के रुख को पलट सकती है।

 

 

 

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