एन सी आर टी की किताबों को दरकिनार कर निजी स्कूलों में कमीशन खोरी का बड़ा खेल जारी, 

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एन सी आर टी की किताबों को दरकिनार कर निजी स्कूलों में कमीशन खोरी का बड़ा खेल जारी, 

यामीन विकट 

ठाकुरद्वारा :  एन सी आर टी की पुस्तकों को दर किनार कर निजी प्रकाशकों की पुस्तकों से कराई जा रही है स्कूलों में पढ़ाई, खुद निजी विद्यालयों द्वारा कमीशन के खेल में अभिभावकों को भारी भरकम कीमतों पर खरीदनी पड़ रही हैं पुस्तकें,

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नगर व आसपास के क्षेत्रों में निजी विद्यालयों में कमीशन का भारी भरकम खेल अपने चरम पर है। अधिकतर विद्यालयों में कभी किसी कार्यक्रम के नाम पर तो कभी किसी कार्यक्रम के नाम पर जंहा बच्चों से अवैध उगाही से अभिभावक तंग हैं तो वंही दूसरी ओर इनमें से अधिकतर विद्यालयों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें पढाई जा रही हैं। ये पुस्तकें विद्यालयों द्वारा अपने अपने खास दुकानदारों से सांठगांठ कर उनके पास रखवा दी गई हैं और अभिभावको को बच्चे के एडमिशन के समय बता दिया जाता है कि हमारे यंहा पढाई जाने वाली पुस्तकें अमुक दुकान पर मिलेंगी तथा ड्रैस फला दुकान पर मिलेगी। अभिभावकों की मजबूरी है कि अगर उन्हें अपने बच्चों को अपने पसंदीदा स्कूल में पढ़ाना है तो पुस्तकें वंही से लेनी है जंहा से स्कूल वालो ने बताया है। ऐसी हालत में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा मनमाने दामो पर पुस्तकें बेची जाती हैं और इस बिक्री में से भारी कमीशन स्कूल संचालकों को दे दिया जाता है।जिससे एक मध्यम वर्गीय परिवार को अपने बच्चों की पढ़ाई पर भारी भरकम रकम खर्च करने का बोझ बढ़ जाता है।आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी कि जिस पुस्तक का वास्तविक मूल्य 50 रुपये होना चाहिए वही पुस्तक अभिभावकों को दो सौ रुपये खर्च करने के बाद मिलती है और अगर स्कूल संचालक से आपके सम्बन्ध ठीक ठाक हैं तो वह अपनी चिन्हित दुकान पर बैठे बुकसेलर को फोन कर देगा और आपको 20 से 30 प्रतिशत तक का कमीशन मिल जाएगा लेकिन आप एक आम आदमी हैं तो आपको प्रिंट रेट पर ही किताबें उपलब्ध होंगी।इसके अलावा इन निजी विद्यालयों में आपसे पूरे 12 महीने की फीस वसूली जाएगी चाहे वह स्कूल अपने शिक्षकों को 11 माह का ही वेतन क्यों न देता हो। कुल मिलाकर ये कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इन स्कूलों में शिक्षा के नाम पर जो गोरखधंधा चल रहा है उसने एक आम अभिभावक की कमर तोड़ कर रख दी है जबकि इनमें से कुछ ही स्कूलों को छोड़कर अगर पढाई की बात करें तो वह निल बटे सन्नाटा ही है। सरकार को इन विद्यालयों के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे ताकि इस कमीशन खोरी को रोका जा सके ताकि शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले इन विद्यालयों में सही तरीके और आसानी से बच्चों को शिक्षा हासिल हो सके ।

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