क्या झोलाछापो पर हो रही कार्यवाहियां महज़ एक दिखावा हैं ?
यामीन विकट
ठाकुरद्वारा : प्रदेश के मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी के आदेशों के बाद भी झोलाछाप सीना तानकर अपने क्लिनिकों को धड़ल्ले से चला रहे हैं। चर्चा है कि एक तयशुदा रकम हर माह एकत्र कर स्वास्थ्य विभाग की झोली में डाली जाती है और वंही से इन्हें छूट मिलती है मौत की दुकानों को चलाने की।
पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी के आदेशो पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने झोलाछापों के विरुद्ध अभियान छेड़ा हुआ है।इस क्रम में अनेक कार्यवाही भी की गई हैं और अनेकों क्लिनिकों को सील किया गया है लेकिन इस सबके बावजूद नगर में झोलाछाप सीना तानकर धड़ल्ले से अपने क्लिनिकों को चला रहे हैं जैसे मानो वह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेशों के अंतर्गत ही नही आते हैं या उनके क्लीनिक उत्तरप्रदेश की सीमा से बाहर हैं। यंहा स्वास्थ्य टीम की कार्यवाही की बात करें तो अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि उनका कार्यवाही करने का तरीका अजीबोगरीब व निराला नजर आ रहा है नगर में कुछ गिने चुने झोलाछापों पर कार्यवाही की गई है जबकि बाकी को खुली छूट दे दी गई है। सूत्रों की मानें तो नगर के झोलाछापों की बाकायदा एक यूनियन बनी हुई बताई जा रही है और उसकी हर माह एक बैठक भी होती है जिसमे आपस में धन की वसूली की जाती है और फिर ये तय शुदा रकम स्वास्थ्य विभाग को पंहुचाई जाती है और काम खत्म, इसका साफ मतलब है कि अब आपको छूट है आप किसी की भी जिंदगी से खिलवाड़ कर सकते हैं।
इस मामले में कितनी सच्चाई है ये तो झोलाछाप ही जानें लेकिन जिस तरह का रवैय्या और जिस तरह की छूट मुख्यमंत्री के सख्त आदेशो के बाद नगर में देखने को मिल रही है उससे लगता है कि सूत्र अपनी जगह सही हैं और कंही न कंही कोई बहुत बड़ा गड़बड़ झाला चल रहा है जिसकी उच्चस्तरीय जांच होनी जरूरी है। इसके अलावा कुछ अन्य बातों पर भी यंहा आपको ध्यान देना होगा कि जब किसी झोलाछाप की दुकान सील होती है तो चंद दिनों के बाद ही वह पुनः खुल जाती है यानी जो क्लिनिक पहले अवैध था वो बाद में वैध हो जाता है तो अगर वो पहले ही वैध था तो सील क्यों किया गया इसका मतलब है कि आप या तो पहले गलत थे या फिर अब गलत कर रहे हैं। या फिर मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हैं कि कार्यवाहियों को बराबर किया जा रहा है। कुल मिलाकर ये साफ है कि कंही न कंही दाल में कुछ काला ज़रूर है।