यामीन विकट
ठाकुरद्वारा : नगर में जुए, सट्टे व नशे का कारोबार धड़ल्ले से किया जा रहा है और कोतवाली पुलिस महज तमाशाई बनी हुई है जिसके चलते छोटी मोटी चोरियां होना आम बात हो गई है। पुलिस की कार्यप्रणाली पर अब उठने लगे हैं सवाल,आखिर कैसे रुकेगा ये सब।
नगर में इन दिनों जुए,सट्टे, व नशे का कारोबार अपने चरम पर है। नशे की हालत ये है कि 20 साल से लेकर 30 साल तक के युवाओं में से विशेषकर नई बस्तियों में हर तीसरे युवा को आप नशा करते हुए देख सकते हैं। यही हालत जुए और सट्टे की भी है इस काम मे युवा पीढ़ी तो शामिल है ही लेकिन उम्रदराज लोग भी अपनी किस्मत आजमाने में किसी से पीछे नहीं हैं।
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नगर के चारो ओर कई स्थान ऐसे हैं जो जुए के अड्डो के रूप में बदनाम हो चुके हैं और इनके आसपास रहने वाले भले लोग इन जुआरियों से अक्सर परेशान रहते हैं। बात करें सट्टे की तो अब सट्टे का कारोबार हाई फाई हो गया है अब किसी को पर्ची के द्वारा सट्टा खेलते या खिलाते हुए नही देखा जा सकता है अब सट्टे का कारोबार मोबाइल फोन के द्वारा किया जाता है। मोबाइल फोन पर ही नम्बर लगाए जाते हैं और मोबाइल फोन पर ही जीतने या हारने की सूचनाएं प्राप्त होती हैं। इससे पुलिस के लिए इसे पकड़पाना थोड़ा मुश्किल तो हुआ है लेकिन ऐसा नहीं है।
कि इन्हें पकड़पाना नामुमकिन है। इसी तरह नशे के कारोबार को खत्म करने की बात करें तो नगर में कोई नशा पैदा नही किया जाता है ये सब बाहर से लाकर ही बेचा जाता है लेकिन आजतक कोई भी बड़ा कारोबारी पुलिस के हाथ नहीं लगा है अब कारोबारी ज्यादा काबिल हैं या पुलिस की दिलाई है ये कहना ज़रा मुश्किल है।जुए, सट्टे,और नशे की चपेट में आये सभी लोग अपनी अपनी लतो की पूर्ति के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं और इसकी शुरुआत हमेशा वह अपने घर से करते पहले वह अपनी जरूरत के लिए घर की छोटी मोटी चीजे बेचते हैं।
और उसके बाद जब घर वाले उसपर नज़र रखते हैं तो वह दूसरों के घरों में चोरी कर अपनी तलब मिटाते हैं।कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि देखने में इन छोटे अपराधों को अगर समय रहते काबू कर लिया जाए तो भविष्य की गर्त में छिपे बड़े अपराधों को बहुत हद तक रोका जा सकता है। लेकिन ये सब तभी मुमकिन हो सकता है जब कोतवाली पुलिस इन मामलों को गम्भीरता से लेकर इसपर योजनाबद्ध तरीके से काम करे और छोटे मोटे नशेडियों और सटोरियों को पकड़ने के बजाय नशे के असली सप्लायर तथा बड़े सटोरियों को पकड़कर उन्हें सलाखों के पीछे पंहुचाये।
लेकिन पुलिस ऐसा करने की जगह छोटी मोटी चोरियों की रिपोर्ट दर्ज करने में ही आना कानी करती है और पीड़ित कई कई दिनों तक कोतवाली के चक्कर काट कर थक जाता है इससे एक बात तो साफ है कि शायद पुलिस ही नही चाहती है कि ये सब पूरी तरह से बन्द हो।