वन्यजीव तस्करी मे क्या सिर्फ पाँच आरोपी ही जिम्मेदार? अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व की सुरक्षा पर उठे सवाल – वन गुर्जरों की गिरफ्तारी ने उजागर की तस्करी की परतें 

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वन्यजीव तस्करी मे क्या सिर्फ पाँच आरोपी ही जिम्मेदार? अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व की सुरक्षा पर उठे सवाल – वन गुर्जरों की गिरफ्तारी ने उजागर की तस्करी की परतें 

                  सलीम अहमद साहिल

 

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बिजनौर जनपद के अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व से एक बार फिर वन्यजीव तस्करी का बड़ा मामला उजागर हुआ है। ताजा कार्रवाई दिनांक 20/09/2025 की सुबह 4 बजे वन विभाग की टीम ने मुखबिर की सूचना पर छापा मारकर मो. असलम पुत्र ताज मोहम्मद निवासी अलीगंज थाना रेहड़, माकोनियां बीट अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व, शमशेर पुत्र नूर आलम, शराफत व रुस्तम पुत्रगण शमशेर अली, तथा अशरफ अली पुत्र लियाक़त अली निवासी ठेरी खत्ता अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व को वन्यजीवों के अवशेषों के साथ गिरफ्तार किया है। प्रारंभिक तौर पर बरामदगी में मिले अंग बाघ अथवा गुलदार के बताए जा रहे हैं, जिनकी पुष्टि फॉरेंसिक जांच के बाद ही हो पाएगी।

 

 

परंपरा से तस्करी तक – बदलते कुछ वन गुर्जरों की तस्वीर

 

वन गुर्जर समुदाय परंपरागत रूप से पशुपालन कर जीवन यापन करता रहा है। जंगलों पर निर्भर यह समाज कभी जंगल का हिस्सा माना जाता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब इनमें से कुछ वन गुर्जर अवैध गतिविधियों में शामिल हो चुके हैं। महंगी जीवनशैली और लग्ज़री ज़िन्दगी ज़ीने की चाहत ने इनको वन्यजीव तस्करी जैसे संगीन अपराध की ओर धकेल दिया है।

यह स्थिति न केवल जंगलों के असली सहारे – उन वन गुर्जरों के लिए कठिनाइयां खड़ी कर रही है जो आज भी कठिन परिस्थितियों में पशुपालन कर बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वो निर्दोष वन गुर्जर भी भय के माहौल मे जीने को मजबूर है और पूरे रिज़र्व की सुरक्षा प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

 

पहले भी उजागर हो चुके हैं संगीन मामले

 

यह पहली बार नहीं है जब अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व से वन्यजीव तस्करी का मामला सामने आया हो। करीब एक वर्ष पूर्व ठेरी खत्ता से पकड़े गए वन गुर्जरो के सगे सम्बन्धी समशाद पुत्र रोशनद्दीन और मांगी पुत्र समशेर अली उर्फ छम्मा शोट्टी को एसटीएफ उत्तराखंड ने टाइगर की खाल के साथ गिरफ्तार किया था। इसी तरह अलीजान पुत्र रोशनद्दीन को अमानगढ़ रिज़र्व टीम ने वन्यजीवों के सींग के साथ रंगे हाथों पकड़ा था।

इतना ही नहीं, लकड़ी तस्करी के मामलों में भी अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व से जुड़े वन गुर्जर जेल की हवा खा चुके हैं। बार-बार उजागर होते ये मामले अमानगढ़ रिज़र्व के पूरे प्रबंधन पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।

 

संवेदनशील क्षेत्र में सुरक्षा पर सवाल

 

अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व एक संवेदनशील वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र होने के साथ-साथ टूरिस्ट जोन भी है। ऐसे में यहां लगातार वन्यजीव तस्करी के मामले सामने आना सामान्य नहीं कहा जा सकता। बाघ और गुलदार जैसे संरक्षित प्रजातियों के अवशेष का बरामद होना अमानगढ़ रिज़र्व की सुरक्षा व्यवस्था की असलियत बयां करता है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाली अवैध गतिविधियां कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव कैसे हैं? इतना बड़ा मामला होने के बाद भी वन विभाग के किसी जिम्मेदार अधिकारी ने स्थानीय स्तर पर तैनात कर्मियों और अधिकारीयो जिनके कंधो पर अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व की जिम्मेदार है उनके ऊपर अभी तक किसी विभागीय कार्रवाई की कोई सूचना सामने नहीं आई है।

 

क्या सिर्फ पाँच आरोपी ही जिम्मेदार?

 

वन विभाग ने ताजा मामले में पाँच लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इतने बड़े अपराध को अंजाम देने में केवल पाँच आरोपी ही शामिल हो सकते हैं? या फिर इनके पीछे एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है, जो जंगलों में संगठित रूप से काम कर रहा है?

इतिहास गवाह है कि वन्यजीव तस्करी गिरोह कभी छोटे स्तर पर काम नहीं करते। ऐसे अपराधों में बड़े स्तर की योजना, नेटवर्क और संरक्षण की भूमिका होती है। क्या केवल कुछ नामों को पकड़कर पूरे मामले को समाप्त मान लिया जाएगा और असली गिरोह जंगलों में सक्रिय ही रहेगा?

 

वन विभाग की खामोशी और जिम्मेदारी

 

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों के कंधों पर रिज़र्व की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, उनके खिलाफ विभाग की कलम अब तक खामोश है। सवाल यह है कि जब एक के बाद एक वन्यजीव शिकार और तस्करी के मामले अमानगढ़ से उजागर हो रहे हैं, तो उच्चाधिकारियों की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?

वन विभाग की यह निष्क्रियता और ढिलाई न केवल विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि कहीं न कहीं विभागीय संरक्षण के बिना इतनी संगीन वारदातें संभव ही नहीं हैं।

 

अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व से लगातार उजागर हो रही घटनाएं अब यह साबित कर रही हैं कि मामला केवल कुछ वन गुर्जरों के व्यक्तिगत लालच तक सीमित नहीं है। यह एक संगठित नेटवर्क है, जिसमें स्थानीय स्तर पर वन विभाग की चुप्पी और मिलीभगत सबसे बड़ा सवाल बनकर सामने आई है।

भविष्य यह तय करेगा कि क्या वास्तव में विभाग उच्चस्तरीय जांच कर इन अपराधियों और उनके नेटवर्क को बेनकाब करेगा, या फिर कुछ आरोपियों को जेल भेजकर इस संगीन मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की जाएगी।

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