10 का पौधा 100 में! उत्तराखंड वन विभाग में ‘हरियाली’ के नाम पर हरियाणा जैसा घोटाला

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10 का पौधा 100 में! उत्तराखंड वन विभाग में ‘हरियाली’ के नाम पर हरियाणा जैसा घोटाला

अज़हर मलिक

उत्तराखंड की पहाड़ियों में इस बार हरियाली नहीं, लूट की कहानी उगाई जा रही है। वन विभाग ने इतने बेशर्म ढंग से भ्रष्टाचार किया है कि अब पेड़ भी शर्म से झुक गए हैं। 10 रुपये का पौधा, 100 में खरीदा गया — और वो भी सरकारी पैसे से! क्या ये सिर्फ लापरवाही है या सुनियोजित लूट?

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देहरादून के झाझरा इलाके में ‘मियावाकी प्लांटेशन’ के नाम पर वन विभाग ने भ्रष्टाचार की जो नई इबारत लिखी है, वो सिर्फ पर्यावरण नहीं, पूरे सिस्टम की जड़ें हिला देती है। मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी ने एक पत्र के ज़रिए इस खुलासे को सबके सामने लाया है — और जैसे ही यह पत्र मीडिया के हाथ लगा, पूरे विभाग के भीतर हड़कंप मच गया।

 

चौंकाने वाला तथ्य ये है कि झाझरा में 18,333 पौधे लगाए जाने के लिए ₹18.33 लाख का खर्च दिखाया गया है — यानी प्रति पौधा ₹100। जबकि इसी प्रकार के पौधे 2020 में कालसी प्रोजेक्ट में मात्र ₹10 प्रति पौधा की दर से लगाए गए थे। मतलब 10 गुना कीमत, बिना किसी ठोस कारण के!

 

क्या उत्तराखंड में पौधे अब सोने की मिट्टी में लगते हैं?

 

इस घोटाले की खास बात ये है कि झूठे खर्च को जायज़ ठहराने के लिए विभाग ने ‘मियावाकी तकनीक’ का बहाना बनाया। लेकिन संजीव चतुर्वेदी की चिट्ठी में साफ लिखा है कि न मियावाकी तकनीक की जरूरत को ठोस रूप से साबित किया गया, न ही पायलट प्रोजेक्ट पर अमल हुआ। सीधे-सीधे लाखों का बजट पार कर दिया गया, और जो अधिकारी जिम्मेदार हैं, वो अब चुप्पी साधे हुए हैं।

 

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब विभाग की अपनी नर्सरी है, तो फिर इतनी बड़ी रकम से बाहर से पौधे क्यों मंगवाए गए?

 

इस खबर ने वन विभाग की पोल खोल दी है। और जिस मंत्री के विभाग के अधीन ये घोटाला हुआ है — क्या उन्होंने कभी खुद जाकर देखा कि इतनी बड़ी रकम किस ज़मीन पर लगाई गई है?

 

अब वन मंत्री सुबोध उनियाल जांच के आदेश देकर पल्ला झाड़ते नज़र आ रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड की जनता पूछ रही है — क्या सिर्फ जांच ही काफी है, या इन भ्रष्‍टाचारियों को सलाखों के पीछे भेजना ज़रूरी है?

 

वन विभाग अब तक जिन पेड़ों को बचाने की बात करता था, वही अब भ्रष्टाचार के जंगल में खो गया है। ये सिर्फ वित्तीय गड़बड़ी नहीं, पर्यावरण से सीधा खिलवाड़ है।

 

अगर ऐसे ही विभागों में बैठे लोग पेड़ बेचकर अपनी जेबें भरते रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ी को छांव देने वाला एक भी दरख्त नहीं बचेगा।

 

 

 

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