देहरादून में ‘दमघोंटू’ हुआ प्रदूषण: 300 के करीब पहुंचा AQI, पहाड़ों की रानी के फेफड़ों में भर रहा है ‘जहर‘
उत्तराखंड की शांत वादियों और शुद्ध हवा के लिए मशहूर राजधानी देहरादून अब एक खतरनाक ‘गैस चैंबर’ में तब्दील होती जा रही है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि यहां की हवा अब सांस लेने लायक नहीं बची है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, देहरादून का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 299 के डरावने स्तर को छू चुका है, जो इस साल का सबसे प्रदूषित रिकॉर्ड है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की चेतावनी ने शहरवासियों की नींद उड़ा दी है, क्योंकि पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर सामान्य से कई गुना ऊपर पहुंच गया है। यह वही शहर है जिसे लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए चुनते थे, लेकिन आज यहां की हवा खुद बीमारियों का सबब बन रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि देहरादून की भौगोलिक स्थिति और मौसम में आए बदलाव ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। दून यूनिवर्सिटी के पर्यावरणविद् डॉ. विजय श्रीधर के मुताबिक, रात के समय ‘फाइन पार्टिकुलेट मैटर’ यानी पीएम 2.5 का स्तर तेजी से बढ़ रहा है, जिससे पूरा शहर धुंध और जहरीले कणों की चादर में लिपटा हुआ है। बारिश का न होना और हवा की रफ्तार थम जाना इस स्थिति को और भी घातक बना रहा है। काशीपुर और ऋषिकेश जैसे शहरों की तुलना में देहरादून की स्थिति कहीं अधिक चिंताजनक है, जहां प्रदूषण का स्तर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में बना हुआ है, जो सीधे तौर पर फेफड़ों और हृदय संबंधी बीमारियों को न्योता दे रहा है।
प्रदूषण के इस जानलेवा ग्राफ के पीछे सिर्फ कुदरत नहीं, बल्कि मानवीय लापरवाही भी बड़ी वजह है। सड़कों पर रेंगता भारी ट्रैफिक, जगह-जगह बेवजह जलाए जा रहे अलाव और खुले में फेंके गए कूड़े के ढेर में लगी आग दून की आबोहवा में जहर घोल रही है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर अनियंत्रित बोनफायर और ट्रैफिक के दबाव पर लगाम नहीं लगाई गई, तो आने वाले दिन और भी डरावने हो सकते हैं। प्रशासन की सुस्ती और लोगों की अनदेखी ने देहरादून को दिल्ली जैसी गंभीर स्थिति की ओर धकेल दिया है, जहां अब हर सांस के साथ शरीर में धूल और धुएं के कण जमा हो रहे हैं।
फिलहाल राहत की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक सी.एस. तोमर के अनुसार, आने वाले कुछ दिनों तक मैदानी इलाकों में बारिश की कोई संभावना नहीं है। जब तक तेज हवाएं नहीं चलतीं या जोरदार बारिश नहीं होती, तब तक प्रदूषण का यह काला साया देहरादून के ऊपर मंडराता रहेगा। कोहरा बढ़ने के साथ ही यह प्रदूषण और भी ज्यादा ‘सफोकेटिंग’ (दमघोंटू) होने के आसार हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या देवभूमि की राजधानी भी दिल्ली के नक्शेकदम पर चलते हुए एक अंतहीन प्रदूषण की मार झेलने को मजबूर होगी? समय रहते अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो देहरादून की पहचान सिर्फ ‘धुएं के शहर’ के रूप में रह जाएगी।