ट्रेन की चपेट में आकर फिर गई एक हाथी की जान, वन विभाग की नाकामी बेनकाब
अज़हर मलिक
उत्तराखंड के जंगलों में वन्यजीवों की जान पर बना संकट लगातार गहराता जा रहा है। ताजा मामला तराई पूर्वी वन प्रभाग के गौला रेंज क्षेत्र का है, जहां देर रात आगराफोर्ट एक्सप्रेस की चपेट में आकर एक नौ वर्षीय नर हाथी की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। घटना लालकुआं कोतवाली क्षेत्र के मुक्तिधाम के पास की है, जहां ट्रेन ने हाथी को इतनी ज़ोर से टक्कर मारी कि मौके पर ही उसकी जान चली गई।
ये कोई पहली घटना नहीं है। रामनगर के जंगलों में हाल ही में दो हाथियों की संदिग्ध मौतें सामने आई थीं—एक बीमार बताकर रिपोर्ट बंद कर दी गई, लेकिन अब लालकुआं की घटना ने साफ कर दिया है कि प्रदेश में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर सरकार और विभाग दोनों गंभीर नहीं हैं।
सवाल उठते हैं देहरादून में बैठे अधिकारियों और वन मंत्री पर, जिनकी जिम्मेदारी है कि वो इन घटनाओं की समय रहते रोकथाम करें। ट्रेनों की स्पीड लिमिट, ट्रैक के आसपास की निगरानी, और वन्यजीव मूवमेंट की जानकारी रेलवे को देने जैसे बुनियादी इंतज़ाम भी नहीं किए गए हैं।
यह जानकर और भी हैरानी होती है कि जिस स्थान पर हाथी की मौत हुई, वहां पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। बावजूद इसके न कोई चेतावनी न अलर्ट सिस्टम, न ही ठोस गश्त का इंतज़ाम किया गया।
वन विभाग पहले से विवादों में घिरा हुआ है। हाल ही में सामने आए एक बड़े घोटाले में करोड़ों की वन विकास निधि में गड़बड़ी के आरोप लगे हैं। वन विभाग के ही कई अधिकारी जांच के घेरे में हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या विभाग का ध्यान वन्यजीवों की सुरक्षा पर है भी, या फिर पूरा सिस्टम घोटालों और बजट खपत में ही उलझा हुआ है?
अब जब उत्तराखंड जैसे राज्य में, जो ‘ईको-सेंसिटिव ज़ोन’ माना जाता है, इस तरह लगातार हाथियों की जान जा रही है, तो जवाबदेही सिर्फ मौके के रेंजर या डिप्टी रेंजर पर नहीं डाली जा सकती। इसकी सीधी ज़िम्मेदारी वन मंत्री और प्रमुख वन सचिवालय में बैठे अफसरों पर आती है।
सरकार कब जागेगी? या फिर अगली मौत की खबर आने तक सब कुछ यूं ही चलता रहेगा?