मक्खन सिर्फ रोटी पर नहीं, सोच पर भी लगना चाहिए!
रिपोर्टर: अज़हर मलिक
कुछ लोग कह रहे हैं कि आजकल मक्खन खाया कम और लगाया ज्यादा जा रहा है… लेकिन ज़रा रुकिए — क्या आपने कभी सोचा है कि मक्खन का असली काम सिर्फ पेट तक ही सीमित है?
नहीं जनाब, मक्खन सिर्फ खाने के लिए नहीं, समझने के लिए भी बना है।
पुराने ज़माने में वैद्य, हकीम और दादी-नानी सिर्फ ये नहीं कहती थीं कि “मक्खन खाओ,” बल्कि ये भी सिखाती थीं कि कब, कितना और क्यों खाओ।
और ये भी सच है कि मक्खन में मौजूद विटामिन A, D, E और K हमारे शरीर को मजबूत बनाने के साथ-साथ त्वचा, हड्डियों और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अमृत के समान है।
पर सवाल ये है कि अगर किसी ने मक्खन को लगाने में इस्तेमाल कर लिया, तो क्या वह दोषी है?
आज के दौर में जब तनाव और थकान हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन चुके हैं, लोग सिरदर्द में, जले पर, सूजन में या थकान के इलाज में मक्खन को बाहरी तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं — और ये आयुर्वेद में मान्य भी है।
तो फिर मक्खन लगाने को गलत ठहराना, क्या ये मक्खन पर इल्ज़ाम नहीं है?
और अगर बात बवासीर, कैंसर या दिल की बीमारी की है, तो यहां भी बात सिर्फ खाने भर की नहीं — बल्कि समझदारी से खाने की है। हर चीज़ की मात्रा और समय ही उसे औषधि या ज़हर बनाता है।
मक्खन का महत्व समझिए, उसका मज़ाक मत बनाइए।
कभी-कभी ये ज़रूरी होता है कि हम चीज़ों को सिर्फ चखें नहीं, बल्कि समझें भी।
क्योंकि मक्खन सिर्फ रोटी पर नहीं, सोच पर भी लगाना ज़रूरी है — ताकि सख़्त सोच थोड़ी मुलायम हो सके।